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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४४१॥
उद्देशक ४.
६ शतके द्र (आगळना उद्देशकमां जीवनुं निरूपण कयु छे. अने हवे आ चोथा उद्देशकमां पण तेज जीवने बीजे प्रकारे निरूपता आ सूत्र कहे .) उद्देश:४ | जीवे णं भंते ! कालाएसेणं किं सपदेसे अपदेसे?, गोयमा! नियमा सपदेसे । नेरतिए णं भंते ! काला-R॥४४१।। देसेणं किं सपदेसे अपदेसे ?, गोयमा ! सिय सपदेसे सिय अपदेसे, एवं जाव सिद्धे । जीवा णं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसा अपदेसा?, गोयमा ! नियमा सपदेसा। नेरइया णं भंते ! कालादेसेणं किं सपदेसा अपदेसा ?, गोयमा! सव्वेवि ताव होजा सपदेसा १ अहवा सपएसा य अपदेसे य २ अहवा सपदेसा य अपदेमा य ३, एवं जाव थणियकुमारा ॥ पुढविकाइया णं भंते ! किं सपदेसा अपदेसा?, गोयमा सपदेसावि अपदेसावि, एवं जाव वणप्फइकाइया,
प्र०] हे भगवन् ! शुं जीव कालादेशवडे-कालनी अपेक्षाए सप्रदेश छे के अप्रदेश ? [उ०] हे गौतम ! जीव नियमा चोकस सप्रदेश छे. ए प्रमाणे यावत् सिद्ध सुधीना जीव माटे जाणवू. [प्र०] हे भगवन ! नैरयिक जीव कालादेशथी सप्रदेश के के अप्रदेश
छ ? [उ०] हे गौतम ! ए कदाच सप्रदेश छे अने कदाच अप्रदेश छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो कालादेशथी सप्रदेश छे के अप्रदेश हा छ ? [उ०] हे गौतम ! चोकस, जीवो सप्रदेश छे.[प्र०] हे भगवन् ! शुं नैरयिक जीवो कालादेशवडे सप्रदेश छे के अप्रदेश छे? उ०]
हे गौतम ! ए नैरयिकोमा १ बधाय सप्रदेश होय, २ केटलाक सप्रदेश अने एकाद अप्रदेश अने ३ केटलाक तथा सप्रदेश केटलाक
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