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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४४२॥
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६ शतके उद्देशः४ ॥४४२॥
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अप्रदेश; ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमार सुधीना जीवो माटे जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! शुं पृथिवीकायिक जीवो सप्रदेश छे के अप्रदेश | | छे ? [उ०] हे गौतम ! तेओ सप्रदेश पण छे अने अप्रदेश पण छे, ए प्रमाणे यावत् वनस्पतिकायिक सुधीना जीवो माटे जाणवू.
सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा ॥ आहारगाणं जीवेगेंदियवज्जो तिय भंगो, अणाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छन्भंगा एवं भाणियब्वा-सपदेसा वा १ अपएसा वा २ अहवा सपदेसे य अप्पदेसे ४.य ३ अहवा सपदेसे य अपदेसा य ४ अहवा सपदेसा य अपदेसे य ५ अहवा सपदेसा य अपदेसा य |६, सिद्धेहिं तियभंगो, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया [भवसिद्धिया जहा ओहिया, नो भवसिद्धियनोअभवसिद्धिया जीवसिद्धेहिं तियभंगो, सण्णीहिं जीवादिओ तियभंगो, असणीहिं एगिदियवजो तियभंगो, नेरइयदेवमणुएहिं छन्भंगो, नोसन्निनोअसन्निजीवमणुयसिद्धेहिं तियभंगो, सलेसा जहा ओहिया, कण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा जहा आहारओ नवरं जस्स अत्थि एयाओ, तेउलेस्साए जीवादिओ तिथभंगो, नवरं पुढविकाइएसु आउवणफतीसु छन्भंगा, पम्हलेससुक्कलेस्साए जीवादिओहिओ तियभंगो, अलेसीहिं जीवसिद्धेहिं तिय भंगो, मणुस्से छभंगा, सम्महिट्ठीहिं जीवाइतियभंगो, विगलिंदिएसु छन्भंगा, मिच्छदिट्ठीहिं एगिदिय| वज्जो तियभंगो, सम्मामिच्छदिट्ठीहिं छन्भंगा, संजएहिं जीवाइओ तियभंगो, असंजएहिं एगिदियवज्जो |तियभंगो, संजयासंजएहिं तियभंगो जीवादिओ, नोसंजयनोअसंजयनोसंजयासंजयजीवसिद्धेहिं तियभंगो, सकसाईहिं जीवादिओ तियभंगो, एगिदिएसु अभंगकं, कोहकसाईहिं जीवएगिदियवज्जो तियभंगो,
ॐ*-%
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