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जंदा णं जंबु. मदरस्स पुरच्छिमेण उक्कोसए अट्ठारस जाव तदा णं जंबुद्दीवे २ दिवसे भवति । व्याख्या-||जया णं पचत्धिमेणं उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे. पञ्चत्थिमणवि उको अवारसमुहुत्ते भवति तदा
५ शतके प्रज्ञप्तिः गणं भंते ! जंबुद्दीवे २ उत्तर दुवालसमुहुत्ता जाव राती भवति ?, हंता गोयमा! जाव भवति । जया गं
उरेशः१ ॥३३३॥ भंते ! जंबु० दाहिणढे अट्ठारसमुहत्ताणतरे दिवसे भवति तदा णं उत्तरे अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवति
॥३३॥ जदाण उत्तरे अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवति तदा गं जैबु० मंदरस्स पब्वयस्स पुरच्छिमपञ्चत्थिमेणं सातिरेगा दुवालस मुहुत्ता राती भवति?, हंता गोयमा! जदा ण जंबु० जाव राती भवति । जदा णं भंते ! | जंबुद्दीवे २ पुरच्छिमेणं अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवति तदा णं पचत्यिमेणं अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे | भवति जदा णं पञ्चत्थिमेणं अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवति तदा णं जंबु० २ मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं साइरेगा दुवालममुहुत्ता राती भवति ?, हंता गोयमा ! जाव भवति ॥
[प्र०] हे भगवन् ! ज्यारे जवृद्वीपमा मंदर पर्वतनी पूर्वे मोटामा मोटो अढार मुहूर्तनो दिवस होय छे त्यारे जंबूद्वीपमा पश्चिमे पण मोटामा मोटो अढार मुहूर्तनो दिवस होय के अने ज्यारे पश्चिमे मोटामां मोटो अढार मुहूर्तनो दिवस होय छे त्यारे हे भगवन् ! जंबूद्वीपमा उत्तरार्धमां नानामां नानी बार मुहूर्तनी रात्री होय छे ? [उ.] हे गौतम ! हा, एज रीते यावन्-होय छे. [प्र०] है | भगवन् ! ज्यारे जंबूद्वीपमा दक्षिणार्धमा अढार मुहूर्त करतां कांइक ऊणो-मुहूर्तानन्तर-दिवस होय छे त्यारे उत्तरार्धमा अढार मुहूनिन्तर दिवस होय हे अने ज्यारे उत्तरार्धमा अढार मुहूर्तानन्तर दिवस होय छे त्यारे जंबुद्वीपमा मंदर पर्वतनी पूर्व पश्चिमे. बार
महत्ताणतणमा जाने अढार
मुहर्तनो
यावत् हा अढार मा
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