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आयुर्वेदीय - जगत् के धुरन्धर - विद्वानों एवं अनेक - शास्त्र - पारङ्गत पण्डितों को भी यथावसर जिसकी सहायता लेनी पड़े, विविध क्रिया-कुशल वैद्यों को भी आवश्यकता पड़ने पर जिसका आश्रय लेना पड़े, तथा अनेक अकुशल एव' स्वल्पमति वैद्य और छात्र समुदाय को भी जिसके भाण्डार से अपने को पूर्ण बनाने के लिए ज्ञान-याचना करनी पड़े, ऐसे श्रायुर्वेदीय-कोष को कितना सारगर्भित, कितना महान् एव सर्वाङ्गपूर्ण होने की आवश्यकता है, इसकी कल्पना प्रायः सभी विज्ञ वैद्य कर सकते हैं । मेरा अनुभव हैं कि योरोप में जब कभी ऐसे महान् कार्य उपस्थित होते हैं, उस समय उस देश के अनेक सर्वोत्तम विद्वान्, जो कि अपने अपने विषयों के विशेषज्ञ होते हैं, परस्पर सहयोग द्वारा, वर्षों तक दृढ़ परिश्रम एवं प्रचुर धन-व्यय करके, उसे सर्वा बनाने की यथाशक्ति चेष्टा करते हैं। इतना ही नहीं, वरन् नवीन नवीन खोज और सुधार पर विशेष ध्यान रखते हुए, उसने आवश्यक परिवर्तन और सुधार करने के लिए जीवन भर सतर्क रहते हैं और सुवार करते जाते हैं | वास्तव में यह कार्य कितना उत्तरदायित्व - पूर्ण, दुःसाध्य एवं दुरूह है, इसे विज्ञ-जन स्वयं समझ सकते हैं । इस विषय में लेखकों को कितनी गम्भीर गवेषणा एवं पाण्डित्य की आवश्यकता होती है, कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, कितनी बाधाओं का प्रतिक्रमण करना होता है, इस अनुमान एक ग्रंथकार ही कर सकता है। दुर्भाग्यवश, भारतवर्ष के विद्वानोंने इस प्रकारकी सामूहिक सहयोगिता पर अभी तक ध्यान नहीं दिया है; फलतः सच्चे उत्साही लेखकों को एकमात्र अपने परिश्रम एवं अध्यवसाय पर निर्भर रहना पड़ता है । एतदतिरिक्त, भारतवर्ष में, प्रेस के लिए प्रतिलिपि करना, मुद्रण एवं संशोधनादि की कठिनाइयों के साथ ही ग्रार्थिक-क्लिष्टता भी प्रायः रहती ही है । अतः इन सब परिस्थितियों के होते हुए भी इस महान् 'श्रायुर्वेदीय-कोष' कर्ता ग्रंथकारद्वय का उत्साह एवं साहस सराहनीय है ।
एक आयुर्वेदीय-कोष के प्रस्तुत करने में जो सबसे बड़ी एवं विचारणीय वाधा है वह है पारिभाषिक शब्दों का अर्थ - निर्णय । कितने ही शब्द ऐसे हैं जिनके अर्थ सन्दिग्ध होते हैं और संस्कृत भाषा में नानार्थक शब्द भी अनेक हैं । यह बाधा, आयुर्वेद की प्रायः सभी शाखाओं में किसी न किसी रूप में वर्तमान है, और वेद के साथ लिखना पड़ता है कि इस विषय के एक सर्वमान्य निर्णय पर वैद्य समाज आज तक भी नहीं
सभी विशेषतः शारीर-विषयक एवं नानार्थ- प्रकाशक भेषजों की परिभाषा पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
यहाँ शारीर-शास्त्र-सम्बन्धी जो कार्य प्रत्यक्ष शारीरम्' द्वारा प्रतिपादित हुआ है उससे वैच समुदाय भली भाँति परिचित है, किन्तु अपज निर्णय का काम अब भी बहुत पीछे है । उदाहरणार्थ प्रष्टवर्ग की औषधियों को ही ले लीजिए । यद्यपि इनके विनिश्वय के लिए काफ़ी प्रयत्न हुए हैं तथापि कोई सर्वमान्य विश्वसनीय निर्णय अभी तक सुप्रसिद्ध नहीं है । रास्ता एवं तगर आदि जैसी सामान्य श्रौषधियों के परिचय में भी बहुत है, क्योंकि देश देश में भिन्न भिन्न प्रकार की चीजें एक ही नाम से प्रसिद्ध हैं । अतः इन सब समस्याओं के समाधान करने के लिए सच्ची लगन के साथ गवेपणा ( Research ) करने की नितान्त आवश्यकता है । घ्रायुर्वेद की सेवा में तन-मन-धन अर्पण करके ही इसका पुनरुत्थान करना है । इसी कार्य की पूर्ति पर युर्वेदीय- कोप की सर्वाङ्गपूर्णता निर्भर करती है । श्रतः इस ओर मैं लेखक महाशयों का ध्यान आकृष्ट करता हूँ कि वे इस कोष को विशेष उपयोगी बनाने के लिए, विविध विषयों के विशेषज्ञों एवम् विद्वानों से कि गवेपणा सिद्ध परामर्श सदैव लेते रहें, ताकि समय समय पर इसमें श्रावश्यक परिवर्तन वम् परिष्कारादि हो सकें ।
आयुर्वेद, तित्री एवम् ऐलोपैथी यादि प्रायः सभी वर्तमान प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों से सम्बन्ध रखने वाले विषयों का इस ग्रंथ में समावेश किया है, जिससे इसका कलेवर अति- विशाल होगया है । इन विषयों को कहाँ तक और किस मात्रा में इस ग्रंथ में सन्निविष्ट करने की श्रावश्यकता थी, इसे विद्वान पाठक स्वयं विचार लें ।
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