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अम्हौरी
अयप्प नई
अम्हौरी amhouri-हिं० संज्ञा स्त्री० [सं० आयुर्वेद के अनुसार शिशिर, वसन्त और
अस्भस जल, अर्थात् पसीना+ौरी (प्रत्य॰)] ग्रीष्म इन तीन ऋतुओं का उत्तरायण काल होता बहुत छोटी छोटी फुन्सियाँ जो गरमी के दिनों में |
है। यह पुरुष के बल का श्रादान काल है अर्थात् पसीने के कारण लोगों के शरीर में निकल पाती
उत्तरायण में सूर्य प्रति दिन मनुष्य के बल को हैं। अँधोरी।
हरण करता है। उत्तरायण में सर्यकाल में सूर्य अयः ayah-सं० पु. १...
का मार्ग बदलने के कारण सूर्य और पवन अत्यन्त अय aya-हिं० संज्ञा प० (१) लोह, लोहा
प्रचण्ड, गर्भ और रूक्ष हो जाते हैं और पृथ्वी के Iron ( Ferrum ) । ( २ ) अग्नि | सौम्य गुणों को नष्ट कर देते हैं। क्रम से इन
( Fire)। (३) अस्त्र शस्त्र । हथियार ।। ऋतुओं में तिक, कपाय और कटु रस उत्तरोत्तर भय aya-ता. पपड़ी-हिं० । रसबीज-कना। बलवान हो जाते हैं अर्थात् शिशिरमें तिक्र, बसन्त
नविली-ते०।ववल--म०। (Holoptelea में कषाय और ग्रीष्म में कट रस बलवान हो जाते Integrifolia, Planch.) फा० इं० हैं। इस कहे हुए हेतुसे बलका पादान अग्नि रूप भा०३।
है तथा इसके विपरीत वर्षा, शरद और हेमन्त प्रयङ्गौलम् ayangoulam-मल. अङ्कोल, ये तीन ऋतु दक्षिणायन कहलाती हैं। इन तीन ढेरा । (Alangium deca petalum,
ऋतुओं में पुरुष के बल की वृद्धि होती है। Lam.) स० फा००।
इसको विसर्ग काल कहते हैं । मेघ की वृष्टि और अयञ्चेण्डरम् ayachchenduram-ता० मण्डुर,
ठंडे पवन के चलने से पृथ्वी पुष्ट और शीतल लौहकिट्ट । ( Feri peroxide.) स०
हो जाती है और इस शीतलता के कारण चन्द्रमा
बलवान हो जाता है और सूर्य हीनता को प्राप्त फा० इं०।
होता है इस ऋतु में उत्तरोत्तर खट्टे, खारे (लवण) प्रयत्ला ayatla-पं० एइलत, एल्लाल, प्रारूड,
और मधुर रस बलवान हो जाते हैं, जैसे वर्षा में अखान ।
खट्टा, शरद में लवण और हेमन्त में मधुर रस प्रयनम् ayanam--सं.क्ली० श्रयन ayan--हिं० संज्ञा पु. ) गात
बलवान हो जाते हैं । वा० सू०३ अ.। सु० चाल । (२)A path, the half year,
सू०। i.e. the sun's course north or (३) मार्ग, राह । (४) अाम । (५) south of the equator.
स्थान । (६) घर । (७) काल, समय । (८) सुर्य वा चन्द्रमा की दक्षिण से
अंश । (१) गाय या भैंस के थन के ऊपर का उतर वा उत्तर से दक्षिण की गति वा प्रवृत्ति
वह भाग जिसमें दूध भरा रहता है । जिसको उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं। अयनकाल ayana-kāla-हिं. संज्ञा प. मे० नत्रिक ।
[सं०] (१) वह काल जो एक अयम में नोट-बारह राशि चक्र का आधा । मकर से ।
लगे । (२) छः महीने का काल । मिथुन तक की ६ राशियों को उत्तरायण कहते अयनी ayani-ता० अञ्जली । पतफणस-म० । हैं; क्योंकि इसमें स्थित सूर्य वा चंद्र पूर्व से | ऐनी, अन्सजेनी-मल । हिबलसु,हेस्वा-कना०। पश्चिम को जाते हुए भी क्रम से कुछ कुछ उत्तर (Artocarpus Hirsuta, Lamk.) को मुकते जाते हैं। ऐसे ही कर्क से धन की मेमो०। संक्रांति तक जब सूर्य या चन्द्र की गति दक्षिण अयपान ayapan-हिं०,मह०, बं० ) अल्लाप-गु०॥ की ओर झुकी दिखाई देती है तब दक्षिणायन
अयपानी ayapani-ता०, ते० विशल्यहोता है।
अयप्पनई ayappanai-ता० कर्णी-सं०।
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