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अनार
अनार
नोट-इसके नूतन लवण तो विश्वास के योग्य होते हैं, परन्तु पुरातन होने पर ये ख़राब हो जाते हैं।
अनार फल त्वक् अथवा मूल त्वक् के क्वाथ से कभी कभी शिथिल कराउक्षत यादि रोगों में गण्डुप कराते हैं । इस हेतु इसकी जड़ की छाल के कल्क का कंठ में प्रलेप करते हैं। गुदा एवं जरायु सम्बन्धी क्षतों में इसका स्थानिक प्रयोग उपयोगी होता है।
इसकी जड़ की छाल श्वेत प्रदर तथा रकक्षरण के लिए अत्यन्त गुणदायक है। इसको आधसेर जौ कुट करके ३-४ सेर पानी में धीमी आँच पर पकाएँ जब पाव भर पानी रह जाए तब उतार कर छान लें। इससे स्त्री अपनी योनि धोया करे। और मलमल का कपड़ा तर करके योनि में रक्खे ।
अनार के पत्ते हारीत-चलित गर्भ में दाडिम पत्र, अस्थिरगर्भा अर्थात् जिसका प्रायः गर्भस्राव हो जाता हो उस स्त्री के गर्भलाव की आशंका के निवारणार्थ गर्भ से पाँचवें मास में अनार के पत्र, श्वेत चन्दन को दधि और मधु के साथ पालो. ड़ित कर सेवन कराएँ । (चि० ४६ श्र०)। रिसाला अमृत के कतिपय
चुने हुए प्रयोग इन योगों में मीठे अनार के पत्ते लेने चाहिए। अनार के ताजे पत्तों को पत्थर पर पीस कर रात को सोते समय हाथ को हथेलियों पर और पाँव
के तलवों पर लेप करने से यह हाथ और पाँवकी - जलन को दूर करता है।
अनार के 10 तोले ताजे पत्तों को 52 पानी में श्रौटाएँ, ॥ पानी शेष रहने पर छान कर दिन में दो तीन बार इसी पानी से गदा धोने से गुदभ्रंश रोग दूर होता है । गर्भाशय के बाहर निकल पाने पर भी इसका प्रयोग गुणदायक होता है। ___ गर्भाशय के बाहर निकल पाने और गुदर्भश में अनार के हरे पत्तों को साया में सुखा कर बारीक पीस कपड़ छान कर ६-६ मा० प्रातः सायं ताजे जल से सेवन कराएँ।
अतीसार में इसकी छाल के क्वाथ में थोड़ी सी अफीम भिलाकर प्रयोग करने से बहुत लाभ होता है।
इसकी छाल के काढ़े में सोंठ और चन्दन का बुरादा छिड़क कर पिलाने से रुधिर युक्र संग्रहणी मिटती है।
अनार की जड़ को पानी में घिस कर लेप करने से शिर का दर्द दूर होता है।
इसकी छाल का चूर्ण बुरकाने ने उपदंश की टांकी मिटती है।
इसकी छाल के काढ़े में तिलों का तेल डाल कर तीन दिन तक पिलाने से पेट के कीड़े बाहर निकल जाते हैं।
अनार के ताजे पत्ते दो तोले, स्याह मिर्च १ माशा, दोनों को 5- पानी में पीस और छान प्रातः एवं इसी प्रकार सायंकाल में पिलाने से यह स्त्रियों के प्रदर रोग को दूर करता है ।
अनार के दो तोले ताजे पत्तों को श्राधपाव पानी में रगड़ और छान कर पिलाना और अनार के पत्तों को पीस कर पेड़ पर लेप करना गिरते हुए गर्भ को रोकता है।
आँख श्राने में अनार का क्वाथ एक दो बुद आँख में टपकाएँ। कुकरे में आँख के पपोटों को उलट कर उक्र काढ़े से आँख को धोने से अत्यन्त लाभ होता है । कर्णशूल तथा कान के भीतर की सूजन में अनार के काढ़े को कान में डालना चाहिए।
अनार के पत्तों को साया में सुखा पीसकर कपड़ छान करके ६-६ मा० सुबह गौ की छाछ और शाम को ताजे पानी के साथ खिलाने से पांडु रोग दूर हो जाता है।
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