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अनार
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अनार
इससे कद्दाना मर कर निकल जाता है । म० अ०। डिमक । ई० मे० मे० | आर० एन. चोपरा । पो० वी० एम०।
पुरातन अतिसार एवं प्रवाहिका में अनार की छाल तथा फल स्वक के स्तम्भक गुण का उपयोग किया जा चुका है। भार० एन० चोपरा । पैलोटिएरोन( Pelletierine ).
(CH 13 NO ) ( ऑफिशल Official ) लक्षण एवं परीक्षा-यह एक क्षारीय सत्व है जो दाडिम की जड़ की छाल द्वारा प्राप्त होता है । इसके वर्ण रहित सूचम रवे होते हैं जो खुली वायु में या ऐसी शीशी में जो पूरी भरी न हो बहुत शीघ्र वर्णयुक्त हो जाते हैं । यह जल में विलेय होते हैं । मात्रा-५-१० ग्रेन ।
पलोटिएरीन सल्फास Pelletierine Sulphas प्युनिसीन सल्फेट Punicine Sulphate-इं० । अनारीन गंधेत् ।
लक्षण एवं परोक्षा- यह एक भूरे रंग का शर्बती द्रव है जो जल में सरलतापूर्वक विलेय होता है। कभी कभी इसकी रवायुक डलियाँ होती हैं । इसको टेपवर्म ( कदाना) को निकालने के लिए ५ से ८ ग्रेन की मात्रा में देते हैं । अस्तु, इसको बासी मुँह खिलाकर उसके दो घंटा पश्चात् कम्पाउंड टिंकचर ऑफ़ जैलप की एक पूरी मात्रा पिला देते हैं। (फ्रेंचकोडेक्स )
मात्रा-पूर्ण वयस्क को ५ से = ग्रेन तक; तेरह वर्ष के नवयुवक को २॥ से ४ श्रेन तक और दो वर्ष के बच्चे के लिए 2 से बेन
लक्षण एवं परीक्षा-यह एक हलका विकृताकार पीत वा धूसर वर्ण का चूर्ण है जो अनार Punica granatum (JMyrtacece) की जड़ एवं कांड की छाल द्वारा प्राप्त क्षारीय सत्व का टैनेट मिश्रण होता है। प्रभाव-कढ्दाने (Tape worm)के लिए कृमिघ्न है। मात्रा२ से - ग्रेन (१३ से ५० सेंटीग्राम)।
यह अनार की जड़ एवं कांड की छाल की प्रतिनिधि स्वरूप व्यवहारमें श्राता है। यह छाल. द्वारा प्राप्त चार क्षारीय सत्वों के टैनेट का मिश्रण है। यह जल में कम परन्तु ऐलकोहल (60°/) के ८० भाग में १ भाग विलेय होता है।
प्रभाव तथा उपयोग-कद्दाना ( Ta. peworm ) पर इसका विशेष मारक प्रभाव होता है। पेलोटिएरीन नामक क्षारीय सत्व के विलयन (१०, ००० में 1) में थोड़ी देर तक डुबो रखने से वह मृतप्राय हो जाता है। इनमें टैनेट अधिक पसंद किया जाता है । क्योंकि अल्प विलेय होने के कारण इसका अधिकांश अपरिवर्तित दशा में ही प्रामाशय से गुजर कर क्षुद्रांत्र में पहुँच जाता है, जहाँ कि इसका कृमि के साथ सम्पर्क होता है । इसका शुद्ध क्षारीय सत्व अथवा विलेय सल्फेट (गंधेत्) सम्भवतः श्रामाशय द्वारा अभिशोपित होकर कतिपय प्रकृति सम्बन्धी लक्षणों को उत्पन्न करता है, यथा-सिर चकराना, दृष्टिमांद्य, मांसपेशीस्थ ग्राक्षेप और कायविस्तार। परन्तु टैनेट के सेवन के बाद ये लक्षण बहुत कम दीख पड़ते हैं। इसको उपवास के बाद ८ ग्रेन (४ रसी) की मात्रा में देना चाहिए और उसके एक या दो घंटे पश्चात् मृत कृमि को निकालने के लिए तीव्र रेचन जैसे जैलप (७॥ रती) अथवा एक अाउस (२॥ तो०) एरंड तेल व्यवहार कराएँ (इससे कृमि भी निर्गत हो जाता जाता है और उदर एवम् सिर में दर्द भी नहीं होता )। थोड़ी मात्रा में टिटनस (धनुस्तम्भ) और पक्षाघात के कतिपय भेदों में पैलीटिएरीन सल्फेट का स्वगन्तःअंतःक्षेप किया जा चुका है । ( Sir W. Whitla.).
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तक।
पैलीटिएरीनी टैनास (Pelletierina Tannus) पेलीटिएरीन टैनेट Pelletierine Tannate-इं० । अनारीन कषायेत् ।
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