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अजवाइ (य) न खुरासानी
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अजवाइ (2)न खुपसानी
कि धत्तूरीन (Atropine) द्वारा विषाक रोगी में देखा जाता है, विरला ही उत्पन्न होता है। ऐट्रोपीन के समान यह तत्काल ब बलपूर्वक नेत्र-कनी नका को प्रसरित कर देता है और इसका यह प्रभाव एट्रोपीन से ४-५ गुणा अधिक होता है। इससे इस्ट्रााक्युलर टेन्शन ( नेत्र पिण्ड का तनाव ) स्पष्टरूप से नहीं बढ़ता।
डॉक्टर क्रॉस (Crauss) के वर्णनानुसार इसके उपयोग करने के पश्चात् उन्मत्तता विद्युताघात के समान तत्क्षण स्थिरता को प्राप्त होती है और रोगी की व्यग्रता शीघ्र शान्तिमय निद्रा में परिवर्तित हो जाती है। परन्तु यह व्यापक वातग्रस्तता रूपी स्थिरता धीरे धीरे होती है।। मद्योन्माद ( डेलीरियम ट्रीमेन्स ), प्रसूतिकोन्माद (प्योरल मेनिया) एव विविध भाँति के अनिद्रा विकारों में यह गुणदायक सिद्ध हुआ है। उस अनिद्रा रोग में जिसमें पागलपन का छिपा | हुधा माद्दा हो, यह सर्वोत्कृष्ट निद्राजनक औषध प्रमाणित हुया है। डाक्टर ब्रस (Bruce ) के | अनुभव के अनुसार यह वृक्त रोगों में अच्छा | प्रभाव करता है। हृच्छूल (अञ्जाइना पेक्टोरिस) में इसका उपयोग कर सकते हैं।
दमा, वीर्यस्त्राव तथा राजयरमा रोगी में स्वेदस्राव को रोकने के लिए और अफीम सत्व (Morphia ) तथा कोकोन के अभ्यासियों की चिकित्सा में यह उपयोगी सिद्ध हुआ है।
जर्मनी के प्रसिद्ध डॉक्टर शनोडरलोन (Schneiderlein) जेनरल अनस्थेसिया ( व्यापकायसन्नता) उत्पन्न करने के लिए स्कोपोलेमीन तथा मान को मिलाकर प्रयोग करना लाभदायक ख़्याल करते हैं। अस्तु, वे ऑपरेशन की पूर्व संध्या को लगभग १ से १. प्रेन स्कोपोलेमीन तथा चौथाई ग्रेन मॉर्फीनको परस्पर संयुक्त कर इसका स्वचा के भीतर अन्तः क्षेप करते हैं। आवश्यकतानुसार ऑपरेशन की सुबह को इसे अधिक मात्रा में दोहराया जाता है। इससे रोगी को गम्भीर निद्रा पाजाती है और | वह ऑपरेशन के पश्चात् कई घण्टों तक सोता रहता है। इस प्रकार वह दुःख व वेदना काल ।
निद्रा में व्यतीत हो जाता है। शिशुजनन काल में इससे "गोधूली निद्रा" उत्पन्न होगी। (ए० मे० मे०)
निद्वाजनक रूप से ज्वर सहित तीवोन्माद सम्म.न्धी रोगियों में यह गुणदायक पाया गया है। इससे किसी प्रकार की हामि की सम्भावना नहीं । वृक्षविकार में जहाँ अफीमसत्व (माफिया) सर्वथा वर्जनीय है और जब सम्पूर्ण अवसादक पोषधियाँ निष्फल सिद्ध होती हैं, उस समय इसका उपयोग निर्भयतापूर्वक किया जाता है। ___ हायोसीन के हाइड्रोनोमेट, हाइड्रोकोरेट तथा हाइडिप्रोडेट शुक्रमेह में लाभदायक पाए गए। (4० वी० एम०). EDIFICATA ( Hyoscyamine ). _यह रचनामें धत्त रीन (ऐट्रोपीन ) के समान होता है तथा हायोसीन व हायोसिनिक एसिड में विश्लेषित किया जा सकता है। यह स्फटिकवत् एवं विकृताकार दोनों रूपों में पाया जाता है । इसके सूक्ष्म श्वेत रवे होते हैं या यह श्यामधूसर वर्ण का सत्व सदृश पदार्थ होता है।
____ हायोसायमीनी सरफ़ास Hyoscyaminæ sulphas.
पर्याय-हायोसायमीन सल्फेट (Hyoscyamine sulphate )-इं०।। रासायनिक संकेत (C17 H23 NO3)2, H, SO4 2H2 0.
FRITT ( Official). यह पारसीकयमानी पन तथा अन्य सोलेनेसीई पौधों में पाए जाने वाले एक ऐलकलाइड (क्षारीय सत्व) का गन्धेत् ( सस्फेट) है।
लक्षण- यह एक पीत या पीत श्वेतवर्ण का स्फटिकवत् व गन्धरहित चूर्ण है जो वायु में से नमी को अभिशोषित करता है।
स्वाद-तिक एवं चरपरा ।
नोट-इसको घायु विशेषकर तर वायु से सुरक्षित गहरे अम्बरी रङ्ग के मज़बूत डाट वाले बोतलों में रखना चाहिए।
लयशीलता-यह २ भाग, एक भाग जल में और ! भाग ४॥ भाग हली (१० प्रतिशत)
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