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अजवाइ (य) न खुरासानी
अपेक्षाकृत बहुत कम करता है। (४) विलाडोना के सदृश यह हृदय पर सबलोत्तेजक प्रभाव नहीं करता, अपितु हृदय पर हायोसीन का अत्यन्त निर्बल प्रभाव पड़ता है। (५) मूनेन्द्रिय विशेषतः वस्ति पर विलाडोना की अपेक्षा इसका अधिक तर अवसादक प्रभाव पड़ता है। क्योंकि वस्तिस्थ श्लैष्मिक कला की नाड़ियों के अन्तिम भाग पर अवसादक तथा निर्बलताजनक प्रभाव करके यह उसके मांस तन्तुओं की ऐंठन को दर करता है। (६ ) हायोसीन से इण्टाक्युलर टेन्शन ( नेत्रपिंड का तनाव ) कम हो जाता है। अस्तु, हायोसायमस का यह प्रभाव उतना नहीं होता जितना कि बिलाडोना का ।
उपयोग-हायोसायमस का उपयोग शाप विकार की अवस्थाओं के अतिरिक्त जिनमें बिलाडोना व्यवहत है, निम्नांकित दशानों में भी होता है।
(1) विविध रोगों की तीव्र पीड़ा में मस्तिकोत्त जना को कम करके नींद लाने के लिए, यथा उन्माद (मेनिया) अनिद्रा या निद्रानाश (इन्साम्निया), खियों की हिस्टीरिया (योषापस्मार के दौरे में ), उच्चा की उन्मादस्था में तथा वात वेदनाओं में इसे देना चाहिए | उन्मत्त शराबी को भी नींद लाने के लिए दे सकते हैं।
श्रतः खुरासानी अजवायन के तरल सत्व को १-१ घंटे के अन्तर से ३०-३० बुद दवा और २॥-२॥ तोला पानी एकत्र कर पिलाते रहें। जब नींद श्राजाय तब बन्द करदें। इस प्रकार ५-६ मात्रा सेवन कराने से ही रोगी सो जाता है।
नींदके लिए हायोसायमीन (खुरासानी अज्मायन का सत्व ) १ ग्रेन ( श्राधी रत्ती ) को साफ्न गरम जल ३ मा० ६ रत्ती में मिलाकर हायपोडर्मिक सिरिञ्ज में भरकर १ से १ बुद तक स्वचा के नीचे पहुचाएँ । इसी को हाइपोडर्मिक इलेक्शन हाइयोसाइमीन कहते हैं ।
(२) रेचक ओषधियाँ जो मरोड़ पैदा करने | वाली हैं उनके उक गुण को कम करने के लिए
अजवाइ (य)न खुरासानी तथा पेचिस की ऐंठन को दूर करने के लिए इसे व्यवहार में लाते हैं।
(३) मूत्रपथ सम्बन्धी चीस चबक अर्थात् वृक्क, वस्ति तथा मूत्र प्रणाली के रोगी यथावस्ति प्रदाह, प्रोस्टेट ग्रन्थि प्रदाह, तथा अश्मरी प्रभृति में वस्तिस्थ प्रारूप निवारण हेतु इसका प्रभावकारी सर, हायोसायमीन, मृदु मुत्रविरेचनीय है, और शरीर से विसर्जित होते समय प्रदाह युक्र झिल्लियों में अंत होने वाली बाततंतनों पर अवसादक प्रभाव करता है । प्रस्तु. जब अनावश्यक रूप से थोड़ा थोड़ा मूत्र निकालने के लिए वस्ति में बार बार ऐंठन होती है, तब विशेष रूपसे इसका उपयोग होता है। उक्र दशा में इसे तारों के साथ संयुक्र कर सेवन करना गुणदायक होता है।
ऐसी दशा में इसको साधारणतः अन्य युरिनरी सिडेटिभूज़ (मूत्रावसादक) या मूरल श्रीषधियों यथा-व्युक्यु या युवा र्साई अथवा बेमी. इक एसिड प्रभृति तथा एल्केलीज़ (क्षारों) के साथ मिलाकर सेवन कराते हैं।
(४) ब्रांकाइटिज़ (कास या श्वास नलिका प्रदाह ) में खाँसी को कम करने के लिए। (५) व्रण शोथ की नीस चदक को दूर करने के लिए इसका पुस्टिस व्यवहार में पारा है । (६) पुतली फैलाने के उद्देश्य से आँखों में डालने के लिए। (७) यह बिलाडोना के समान उन्माद, मुखशोथ, नेकनीदिका विस्तार तथा निद्रा उत्पन्न करता है । सूक्ष्म मात्रा में यह अवसादक और हृदयरलदायक है। अधिक मात्रा उरोजक एवं अत्यधिक मात्रा निलसाजनक है। प्रस्तु, हृदय सम्बन्धी दमा तथा हृदय कपाट सम्बन्धी विकार एवं तजन्य हृदयोत्तेजना में इसका उपयोग किया जाता है।
बच्चों में इसकी बड़ी मात्रा के सहन की क्षमता होती है। किन्न, वृद्ध एवं निर्बल ब्यक्रियों में इसकी छोटी मात्रा का भी गहरा प्रभाव होता है। एक चाय के चमचा भर इसका रस सर्वोत्तम औषध है, परन्तु यह ऑफिशल नहीं।
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