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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (९२७) सिद्ध करने के समय मुलहटीका भी मिलाना उचितहै पीछे पूर्वोक्त विधिभी हितहै और मेदकी ग्रंथि. में कहा हुआ तेलभी हितहै ।। ५४ ॥
तालीशं पद्मकं मांसी हरेण्वगुरुचन्दनम् ॥ हरिद्रे पद्मवीजानि सोशीरं मधुकं च तैः॥ ५५॥
पक्कं सद्योत्रणेषूक्तं तैलं रोपणमुत्तमम् ॥ ताटीशपत्र कमल बालछड रेणुकीज अगर चंदन हलदी दारुहलदी कमलके बीज खस मुलइटी इन्होंसे ।। ५५ ।। पकायाहुआ तेल सद्योत्रणमें उत्तम अंकुर लानेवाला कहा है ।।
गूढप्रहाराभिहते पतिते विषमोच्चकैः॥ ५६ ॥ कार्य वातास्रजित्तृप्तिमर्दनाभ्यंजनादिकम् ॥ ५७ ॥ विश्लिष्टदेहं मथितं क्षीणं मर्माहताहतम् ॥
वासयेत्तैलपूर्णायां द्रोण्यां मांसरसाशिनम् ॥ ५८ ॥ और गूढप्रहारसे अभिहत हुये और विषम तथा ऊंचसे पतितहुये मनुष्यमें ॥ ५६ ॥ वात रनको जीतनवाली तृप्ति मर्दन मालिस करनेमें हितहै ॥५७॥ विश्लिष्ट देहबाला और मथितहुआ
और क्षीण और मर्ममें चोटके लगजानेसे पीडितहुए मनुष्यको मांसके रसका भोजन करवाक तेन्टसे पूरितकरी द्रोणीमें बास करावै ॥ ५८ ॥ इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकाया
मुत्तरस्थाने षड्विंशोऽध्यायः ॥ २६ ॥
सप्तविंशोऽध्यायः। अथातो भङ्गप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर भंगप्रतिषेधनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे। पातघातादिभिर्द्वधा भङ्गोऽस्थ्ना सन्ध्यसन्धितः॥प्रसारणाकुश्चनयोरशक्तिः सन्धिमुक्तता ॥१॥ इतरस्मिन्भृशं शोफः सर्वावस्थास्वतिव्यथा ॥ अशक्तिश्चेष्टितेऽल्पेऽपि पीड्यमाने सशब्दता॥२॥ समासादिति भङ्गस्य लक्षणं बहुधा तु तत्॥ भिद्यते भङ्गभेदन तस्य सर्वस्य साधनम् ॥३॥ यथा स्यादुपयोगाय तथा तदुपदेक्ष्यते॥ संधि और असंधिभेदसे पातघातादिसे हड्डियोंका भग दो प्रकारकाहै, और संविभंगमें प्रसारण और आकुंचनमें असमतार्थ और संधिका छुटजाना ॥ १ ॥ और अन्य संधिभंगमें अत्यंत शोजा और सब अवस्थाओंमें अत्यंत पीडा और अल्परूप व्यापारमेंभी शक्तिका अभाव और पीडितहुयमें
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