SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ३६ ) www.kobatirth.org अष्टाङ्गहृदये चतुर्थोऽध्यायः । 100 - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथातो रोगानुत्पादनीयाध्यायं व्याख्यास्यामः ॥ इसके अनंतर रोगानुत्पादनीयनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । अर्थात् रोग उत्पन्न होने कारण कहेंगे ॥ वेगान्न धारयेद्वातविण्मूत्रक्षवतृक्षुधाम् ॥ निद्राकासश्रम श्वासजृम्भाशुक्छर्दिरेतसाम् ॥ १ ॥ वात- विष्ठा-मूत्र- छींक - तृषा - क्षुधा --- नीद - खांसी - - श्रम - श्वास --- - जंभाई - शोक - छर्दि - वीर्य इन्होंवेगोंको धारण करें नहीं ॥ १ ॥ अधोवातस्य रोधेन गुल्मोदावर्तरुकक्लमाः ॥ वातमूत्रशकृत्सङ्गदृष्ट्यग्विद्धहृद्वदाः ॥ २ ॥ अधोवातके रोकनेकरके गुल्म - उदावर्त - शूल - ग्लानि - वातबंध - मूत्रबंध - विष्ठाबंध दृष्टि और अग्निका नाशश-हृद्रोग-ये सब उपजते हैं ॥ २ ॥ स्नेहस्वेदविधिस्तत्र वर्तयो भोजनानि च ॥ पानानि वस्तयश्चैव शस्ते वातानुलोमनम् ॥ ३ ॥ स्नेहविधि और स्वेदविधि - फलवर्तियां-भोजन - पान - बस्तियां - ये सब करने योग्य हैं और वातको अनुलोम करनेवाला पदार्थभी प्रशस्त है ॥ ३ ॥ शकृतः पिण्डिकोद्वेष्टप्रतिश्यायशिरोरुजः : 11 ऊर्ध्ववायुः परीकर्ता हृदयस्योपरोधनम् ॥ ४ ॥ विष्ठा के अवरोध करके पिंडिकाका उद्वेष्ट जंघा में गांठ- प्रतिश्याय पीनस - शिरमें शूल - ऊर्ध्ववात परिकर्तिका हृदयोपरोध || ४ || मुखेन विप्रवृत्तिश्च पूर्वोक्ताश्चामयाः स्मृताः ॥ अङ्गभङ्गाश्मरीबस्तिमेवंक्षणवेदनाः ॥ ५ ॥ मुखके द्वारा विष्ठाकी प्रवृत्ति और पूर्वोक्त सब रोग उपजते हैं मूत्रके रोधसे अंगभंग पथरी बस्ति शूल लिंगशूल अंडसंधिशूल ॥ ५ ॥ मूत्रस्य रोधात्पूर्वे च प्रायो रोगास्तदोषधम् ॥ वर्त्यभ्यङ्गावगाहाश्च स्वेदनं बस्तिकर्म च ॥ ६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy