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(९१४)
अष्टाङ्गहृदयेइस व्रणमें शोजाकी अवस्थामें यथायोग्य बमन और जुलाब ॥ २३ ॥ युक्त करना योग्यहै क्योंकि शुद्धहुये मनुष्योंका शोजा और घाव शीघ्रही शांत होजाताहै ॥
कुर्य्याच्छीतोपचारं तु शोफावस्थस्य सन्ततम् ॥ २४ ॥
दोषाग्निरग्निवत्तेन प्रयाति सहसा शमम् ॥ और शोजाकी अवस्थावालेको निरंतर शीतोपचार करना ॥ २४ ॥ क्योंकि अग्निकी तरह दोषाग्निहै सो तिस शीतोपचारसे शीघ्र शांत होजातीहै ॥
शोफे व्रणे च कठिने विवणे वेदनान्विते ॥ २५॥ विषयुक्ते विशेषेण जलौकायैर्हरेदसृक् ॥
दुष्टास्त्रेऽपगदे सद्यः शोफरागरुजां शमः ॥ २६ ॥ और कठिनरूप और वर्णसे रहित और पीडासे संयुक्त शोज में और ब्रणमें ॥ २५ ॥ और विषसे युक्तहुये शोजे; विशेषकरके जोक आदिसे रक्तको निकासै क्योंकि दुष्ट रक्तके निकसजानेके पश्चात् शीघ्रही शोजा रोग पीडाकी शांति होजातीहै ॥ २६ ॥
हते हृते च रुधिरे सुशीतैः स्पर्शवीर्ययोः ॥ सुश्लक्ष्णैस्तदहःपिष्टैः क्षीरेक्षुस्वरसद्वैः ।। २७ ॥ शतधौतघृतोपेतैर्मुहुरन्यैरशोषिभिः॥
प्रतिलोमं हितो लेपः सेकाभ्यङ्गाश्च तत्कृताः ॥ २८॥ - बारबार रक्तको निकासनेके पश्चात् स्पर्शमें और वीर्यमें सुंदर शीतलरूए और अच्छीतरह कोमल और तिसी दिनमें पिसेहुये दूध और ईखके स्वरस द्रव पदार्थमे ॥ २७ ॥ लयुक्त और १०० चार धोयेहुये घृतसे संयुक्त द्रव्योंकरके और नहीं शोषित करनेवाले अन्य पदार्थोसे वारंवार प्रतिलोमपनेसे लेपहितहै, और इन्हीं द्रव्योंसे कियहुये सेक और मालिस हित ।। २८ ॥
न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थप्पुक्षवेतसवल्कलैः॥
प्रदेहो भूरिसर्पिभिः शोफनिर्वापणं परम् ॥ २९॥ वड गूलर पीपल वृक्ष पिलखन वेत इन्होंके छालोंके कल्कमें बहुतसा वृतमिलाके किया लेप निश्चय शोजाको दूर करताहै ॥ २९ ॥
वातोल्बणानां स्तब्धानां कठिनानां महारुजाम् ॥ स्त्रुतासृजां च शोफानां व्रणानामपि चेदृशाम् ॥३०॥ आनूपवेसवाराद्यैः स्वेदः सोमास्तिलाः पुनः ॥
भृष्टा निर्वापिताः क्षीर तत्पिष्टादाहरुग्घराः ॥ ३१ ॥ बातकी अधिकताबाले स्तब्धरूप कठिनरूप अत्यंत पीडाबाले और झिरहुये रक्तवाले शोजोपै और भावोपै ॥ ३० ॥ अनूपदेशके मांस आदिकरके पसीना देना हितहै, और
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