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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
( ९१५ )
अलससे मिलेहुये तिलोंको ले पीछे दूधमें भून और दूधमेंही पीस लेपकरै ता दाह शूलचरका नाश होता है ॥ ३१ ॥
स्थिरान्मन्दरुजः शोफान्स्नेहैर्वातकफापहैः ॥
अभ्यज्य स्वेदयित्वा च वेणुनाड्या शनैः शनैः ॥ ३२ ॥ विम्लापनार्थं मृहीयात्तलेनाङ्गुष्ठकेन वा ॥ यवगोधूममुद्वैश्च सिद्धपिष्टैः प्रलेपयेत् ॥ ३३ ॥
स्थिररूप और मंद पीडासे संयुक्त शो जोंको नाशनेवाले स्नेहों करके मालिस कर और पसीनादे पीछे बांसकी नाडीकरके होने हौले || ३२ || विम्लापनके अर्थ मर्दितकरै अथवा अंगूठाके तसे मदिरे पीछे संभाल के रसने पिसहुये जब गेहूं मूंग से लेपितकरै ॥ ३३ ॥
विलीयते स चेन्नैवं ततस्तमुपनाहयेत् ॥
अविदग्धस्तथा शान्ति विदग्धः पाकमनुते ॥ ३४ ॥
जो ऐसे करनेसे सोजा दूर नहीं होवे तो तिसको लेप करे और नहीं दग्धहुआ शांतिको प्राप्त होता है और विग्हुआ पाकको प्राप्त होता है ॥ ३४ ॥
सकोलतिलवलोमा दध्यमला सक्तपिण्डिका ॥ सकिण्वकुष्ट लवणा कोष्णा शस्तोपनाहने ॥ ३५ ॥
वर और तिलोंकरके लोमोंवाली और खड्डी दहीसे संयुक्त मदिरासे वचा द्रव्य कूठ नमकसे संयुक्त और कछुक गर्म सतुओंकी पिंडिका उपनाह में है || ३५ ॥
सुप पिण्डिते शोफे पीडनैरुपपीडिते ॥
दारणं दारणार्हस्य सुकुमारस्य चेष्यते ॥ ३६ ॥
सुंदर पके हुए प्रथितरूप और पीडन द्रव्योंसे उपपीडित सोजे में दारण करनेके योग्य सुकुमार मनुष्य दारणकरना योग्य है || ३६ ||
गुग्गुल्बतसिगोदन्तस्वर्णक्षीरी कपोतविट् ॥
क्षारौषधानि क्षाराश्च पक्कशोफविदारणम् ॥ ३७ ॥
गूगल अलसी चोष गोदंती हरताल कबूतरकी वीट खारकी विधिसे कहे औषध और सब खार ये पके हुये शोजेको दारित करते हैं ॥ ३७ ॥
पूयगर्भानणुद्वारान्सोत्सङ्गान्मगानपि
॥
निःस्नेहैः पीडनद्रव्यैः समन्तात्प्रतिपीडयेत् ॥ ३८ ॥
रादरूप गर्भसे संयुक्त और सूक्ष्म द्वारवाले और उत्संगसे युक्त और मर्ममें प्राप्त घावोंको स्नेहसे वर्जित पीडन द्रव्योंसे सब ओरसे प्रतिपीडितकरै ॥ ३८ ॥
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