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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । ( ९०९) और उडद कोदू कांजी इह्रोंकी यवागू तीन दिनोंतक धरीहुई ॥ ४३॥ लोह और श्वेत अरं. डसे उत्कटकरी और पिसीहुई बगलेकोभी रंग देतीहै तो सफेद बालोंकी कौन कथाहै ॥
प्रपौण्डरीकमधुकपिप्पलीचन्दनोत्पलैः ॥ ४४ ॥ सिद्धं धात्रीरसे तैलं नस्येनाभ्यंजनेन च ॥
सर्वान्मूद्धगदान्हन्ति पलितानि च शीलितम् ॥४५॥ और कमल मुलहटी पीपल चंदन नीलकमल ॥४४॥ आमलेका रस इन्होंमें सिद्धकिया तेल नस्य करके और मालिश करके शिरके सब रोगोंको नाशताहै और अभ्याससे पलितरोगोंको नाशताहै४९
वरीजीवन्तिनिर्यासपयोभिर्यमकं पचेत् ॥
जीवनीयैश्च तन्नस्यं सर्वजचूर्ध्वरोगजित् ॥ ४६ ॥ शतावरी और जीवंतिका क्वाथ और दूध इन्होंके तेलसे संयुक्त किये घृतको पकावै, तिसका नस्य सब जत्रुके ऊपरके रोगोंको जीतता है ॥ ४६॥
मयूरं पक्षपित्तान्त्रपादविट्तुण्डवर्जितम् ॥ दशमूलबलारास्ना मधुकैस्त्रिपलैर्युतम्॥४७॥जले पक्त्वा घृतप्रस्थं तस्मिन्क्षौरसमं पचेत् ॥ कल्कितैर्मधुरद्रव्यैः सर्वजध्वरोगजित् ॥४८॥ तदभ्यासीकृतं पानं वस्त्यभ्यञ्जननावनैः ।। पांख पित्त आंत पैर बीठ तुंडसे रहित मोरको लेबै, और दशमूल खरेहटी रायशण मुलहटी इन्होंके बारह बारह तोले चूर्णसे संयुक्तं करै ।। ४७ ॥ जलमें पकाके पीछे तिसमें ६४ तोले वृत और६४ तोले दूध और मधुरद्रव्यों के कल्कको मिलाके घृतको सिद्ध करै, यह हसलीके ऊपरके सब रोगोंको जीतता है ॥ ४८ ॥ परंतु पान बस्ति मालिश नस्यके द्वारा इसका अभ्यास करै ।।
एतेनैव कषायेण घृतप्रस्थं विपाचयेत्॥४९॥ चतुर्गुणेन पयसा कल्कभिश्चकार्षिकैः।जीवन्तीत्रिफलामेदामृद्वीकादिपरूषकैः।। ॥५०॥ समझाचविकाभार्टीकाश्मरीकर्कटाह्वयैः॥ आत्मगुप्ता महामेदातालुखर्जूरमुस्तकैः॥५१॥ मृणालबिसखर्जूरयष्टीमधुकजीवकैः ॥ शतावरीविदारीक्षुबृहतीसारिवायुगैः॥५२॥ दूर्वाश्वदंष्ट्रर्षभकशृङ्गाटककसेरुकैः॥रास्नास्थिरातामलकीसूक्ष्मैलाशठिपौष्करैः॥ ५३॥पुनर्नवातुगाक्षीरीकाकोलीधन्वयासकैः॥ मधूकाक्षोटवाताममुंजाताभिषुकैरपि॥५४॥ महामायूरमित्येतन्मायूरादधिकं गुणैः॥धात्विन्द्रियस्वरभ्रंशश्वासकासार्दितापहम् ॥ ५५ ॥ योन्यसृक्छुक्रदोषेषु शस्तं वन्ध्यासुतप्रदम् ॥
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