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( ९०८)
अष्टाङ्गहृदये
नील शिरस कुरंटा भंगरा इन्होंके स्वरसमें भावितकिये किकरोली बहेडा तिलकूट इन्होंके बीजों को ॥ ३५ ॥ बकरी के दूधसे पीस लोहेपै लेपकरै और सूर्य्यकी किरणोंसे तापितकर पीछे तिसमें पकाया तेल दूधको भोजन करनेवाले मनुष्यके नस्य लेनेसे पलितरोगको नाशता है ॥ ३६ ॥ क्षीरात्सहचराद् भृङ्गरजसः सौरसाद्रसात् ॥
प्रस्थैस्तैलस्य कुडवसिद्धो यष्टीपलान्वितः ॥ ३७ ॥ नस्यं शैलोद्भवे भाण्डे शृङ्गे मेषस्य वा स्थितः ॥
दूध कुरंटा भंगरेका रस संभालुका रस ये सब पृथक् पृथक् चौसठ तोले लेवे, और तेल १६ तोले ले और मुलहटी ४ तोले इन्होंको मिलाके सिद्धकिया तेल ॥ ३७ ॥ पत्थरके पात्र में अथवा - बकरेके सींग में स्थित रहा उत्तम नस्य है ||
क्षीरेण श्लक्ष्णपिष्टौ वा दुग्धिकाकरवीरकौ ॥ ३८ ॥ उत्पाटय पलितं देवा वाशये पलितापहौ ||
और दूध से सूक्ष्म पितेहुये दूधी और कनेर ॥ ३८ ॥ पलित अर्थात् सफेद वालोंको दूरकर तिन्होंके स्थान में देने योग्यहैं, ये पलितरेरोगको दूर करते हैं |
क्षीरं प्रियालं यथाह्वं जीवनीयो गणस्तिलाः ॥ ३९ ॥ कृष्णाः प्रलेपो वक्रस्य हल्लोमवलीहितः ॥
और दूध चिरोंजी मुलहटी जीवनीयगणके औषध काले तिल || ३९ ॥ इन्होंका मुखपै लेप 1. इंद्रलुप्त और वलियों में हित है ॥
तिलाः सामलकाः पद्मकिञ्जल्को मधुकं मधु ॥ ४० ॥
बृंहयेच्च रजे चैतत्केशान्मूर्द्धप्रलेपनात् ॥
और तिल आमला कमल केशर मुलहटी शहद ॥ ४० ॥ इन्होंका शिरपै लेप करनेसे यह चालोंको रंग देता है, और पुष्ट करता है ||
मांसी कुष्ठं तिलाः कृष्णाः सारिवा नीलमुत्पलम् ॥ ४१ ॥ क्षौद्रं च क्षीरपिष्टानि केशसंवर्द्धनं परम् ॥
और बाछड कूठ कालेतिल अनंतमूल नीलाकमल ॥ ४१ ॥ इन्होंको दूधमें पीस शहद से संयुक्तकरे ये बालों को अत्यंत बढाते हैं |
अयोरजो भृङ्गरजस्त्रिफला कृष्णमृत्तिका ॥ ४२ ॥ स्थितमिक्षुरसे मासं समूल पलितं रजेत् ॥
और लोहेका चूर्ण भगरेका चूर्ण त्रिफला कालीमाटी ॥ ४२ ॥ इन्होंको ईखके रसमें एक मही नातक स्थितकरै, यह मूलसहित पलितको रंगता है ॥
माषकोद्रवधान्याम्लैर्यवागूस्त्रिदिनोषिता ॥ ४३ ॥ लोहशुक्लोत्कटा पिष्टा बलाकामपि रंजयेत् ॥
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