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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (८८९) विदर्भरोगमें दंतमूलोंके अग्रभागोंको मंडलाप्रशस्त्रकरके शोधै पीछे खारको प्रयुक्तकर और शीतलरूप नस्य और गंडूष आदिको देवै ॥ ३९ ॥ संशोध्योभयतः कायं शिरश्चोपचरेत्ततः॥नाडी दन्तानुगां दन्तं समुद्धत्याग्निना हरेत्॥४०॥कुब्जां नैकगतिं पूर्णा मदनेन गुडेन वा ॥धावनं जातिमदनखदिरस्वादुकण्टकैः॥४१॥क्षीरिक्षाम्बुगण्डूषो नस्यं तैलं च तत्कृतम् ॥ दोनों तरहसे शरीरको और शिरको शुद्धकर पीछे दंतसे अनुगतहुई नाडीका उपचार करें दंतको उखाड पीछे अग्निसे दग्धकरै ।। ४० ॥ कुब्जरूप और नहीं एक गतिवाली पूर्णको मैंनफलसे अथवा गुडकरके दग्ध करै और चमेली मैंनंफल खैर गोखरूसे धावन करना हितहै।४ १॥ दूधवाले वृक्षोंके पानीसे गंडूष हितहै और तिन्हीं औषधोंमें किये तेलकी नस्यभी हितहै ।। कुर्याद्वातोष्ठकोपोक्तं कण्टकेष्वनिलात्मसु ॥४२॥ और वातसे उपजे कंटकोंमें वातज ओष्ठकोपमें कहे औषधोंको करै ॥ ४२॥ जिह्वायां पित्तजातेषु घृष्टेषु रुधिरे सुते ॥ प्रतिसारणगण्डूषनावनं मधुरैर्हितम् ॥४३॥ जीभमें पित्तसे उपजे घृष्टीमें रक्तको झिराके पीछे मधुरद्रव्योंसे प्रतिसारण गंडूष नस्य हितहै ४ ३ तीक्ष्णैः कफोत्थेष्वप्येवं सर्षपत्र्यूषणादिभिः॥ सरसों झूठ मिरच पीपल इन तीक्ष्ण द्रव्योंसे कफसे उपजे पूर्वोक्त रोगोंमें प्रतिसारणनस्य गंडूष हितहै ॥ नवे जिह्वालसेऽप्येवं तं तु शस्त्रेण न स्पृशेत् ॥४४॥ और नवीनरूप जिह्वाल समें भी ऐसही औषध करै, और तिस रोगको शस्त्रसे छेदै नहीं ॥४४॥ उन्नम्य जिह्वामाकृष्टां बडिशेनाधिजिबिकाम् ॥ छेदयेन्मण्डलाग्रेण तीक्ष्णोष्णैवर्षणादि च॥४५॥ अच्छीतरह आकृष्टकरी जीभको उन्नमितकरै, पीछे बडिशकरके अधिजिह्वाको मंडलायसे छेदितकरे तीक्ष्ण और गरम औषधोंसे घर्षण आदिको करै ॥ ४५ ॥ उपजिह्वां परिस्राव्य यवक्षारेण घर्षयेत् ॥ उपजिह्वाको परिस्रावितकर पीछे जवाखारसे घिसे ॥ कफनैः शुण्डिका साध्या नस्यगण्डूषघर्षणैः॥ ४६ ॥ और कफको नाशनेवाले नस्य गंडूषघर्षणसे शुंडिकारोग साधितकरना योग्यहै ॥ ४६ ॥ ऐरुबीजप्रतिमं वृद्धायामशिराततम् ॥ अग्रे निरिष्टं जिह्वाया बडिशाधवलम्बितम् ॥ १७ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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