________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(८८८)
अष्टाङ्गहृदयेदन्तपुप्पुटके स्विन्नच्छिन्नभिन्नविलेखिते ॥३२॥ यष्ट्याह्वस्वजिंकाशुण्ठीसैन्धवैः प्रतिसारणम् ॥ उपकुशरोगमें गरमपानीको धारणकरके स्वेदितकरे, दंतोंके मांसोंको मंडलाग्र शस्त्रसे तथा शाक आदिके पत्तोंसे बहुतकरके लेखितकरै ॥ २९ ॥ पीछे घूतके मंड और शहदसे लपेटेहुये लाख मालकांगनी रक्तचंदन सेंधानमक गेरू ॥ ३० ॥ कूठ सूंठ मिरच मुलहटी मूर्वा रसोतके चूर्णो से प्रतिसारित करे, इसपै सुखपूर्वक गरम किये घृतके मंडका अनुपानकर, अथवा तेलको मुखमें धारणकरै ॥ ३१ ॥ स्विन्न छिन्न भिन्न विलेखित किये दंतपुप्पुटमें मधुर औषधोंसे सिद्ध . किया घृत कवलग्रहमें तथा नस्यमें हितहै।।३२॥मुलहटी साजी झूठ सेंधानमकसे प्रतिसारण करवावे।।
विद्रधौ कटुतीक्ष्णोष्णरूक्षैः कवललेपनम् ॥३३॥ घर्षणं कटुकाकुष्ठवृश्चिकालीयवोद्भवैः॥ रक्षेत्पाकं हिमैः पक्कः पाटयो दाह्योऽवगाढकः ॥ ३४॥ और दंतविद्रधीमें कटु तीक्ष्ण गरम रूक्ष औषधोंसे कवल तथा लेप हितहै ॥ ३३ ॥ कुटकी कूठ सांठी जवाखारसे घर्षण करै, और शीतल द्रव्योंसे पाकको रक्षित करै, और पककियेको पाटितकरै, तथा अवगाढरूपको दग्धकरे ॥ ३४ ॥
सौषिरे छिन्नलिखिते सक्षौद्रैःप्रतिसारणम्॥रोध्रमुस्तमिशिश्रेष्ठातायपत्तङ्गकिंशुकैः॥३५॥ सकट्फलैः कषायैश्च तेषां गण्डू ष इष्यते॥यष्टीरोधोत्पलानन्तासारिवागरुचन्दनैः ॥३६॥सगैरिकसितापुण्ड्रैः सिद्धं तैलं च नावनम्॥ छिन्न और लेखितकिये सौषिररोगमें शहदसे संयुक्त किये लोध नागरमोथा सौंफ त्रिफला रसोत लालचन्दन केशूसे प्रतिसारण करै ॥ ३५॥ और कायफलसे संयुक्त किये औषधोंके काथोंसे कुल्ला करना अच्छा और मुलहटी लोध नीलाकमल धमासा अनन्तमूल अगर चंदन ॥ ३६॥ गेरू मिसरी पौडेमें सिद्धकिया तेल नस्यमें हितहै ॥
छित्त्वाधिमांसके चूर्णैः सक्षौद्रैः प्रतिसारयेत् ॥ ३७॥ वचातेजोवतीपाठास्वर्जिकायवशकजैः॥
पटोलनिम्बत्रिफलाकषायः कवलो हितः ॥ ३८॥ और आधिमांसकरोगको छेदित कर पीछे शहदसे संयुक्त किये नीचे लिखी औषधोंसे प्रतिसारित करवावै ॥ ३७॥ वच मालकांगनी पाठा साजीखार जवाखारसे तथा परवल नींब त्रिफलेका काथ कवलमें हितहै ॥ ३८ ॥
विदर्भ दन्तमूलानि मण्डलायेण शोधयेत् ॥ क्षावं युङ्ग्यात्ततो नस्यं गण्डूषादि च शीतलम् ॥ ३९॥
For Private and Personal Use Only