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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३०) अष्टाङ्गहृदयेदक्षिणानिलशीतेषु परितो जलवाहिषु ॥ २३ ॥ और सूंठका पानीको और सार आसना चंदनादि गणकरके कथितहुये जलको पीवे तथा शहदकरके संयुक्त पानीको पीवे, तथा नागरमोथा करके कथित हुये पानीको पावे, और दक्षिणकी वायुकरके शीतल और चारों तर्फको जलके बहनेसे संयुक्त ॥ २३ ॥ अदृष्टनष्टसूर्येषु मणिकुट्टिमकान्तिषु॥ परपुष्टविघुष्टेषु कामकान्तभूमिषु ॥ २४ ॥ और सूर्यके दीखनेसे रहित, और कहीं कछुक सूर्यके दीखनेसे संयुक्त, और हीरा तथा . मणिआदिकरके विशिष्ट पृथिवीसे शोभित, और कोकिलपक्षियों करके शब्दित और कामके व्यापारवाली पृथ्वीमें ॥ २४ ॥ विचित्रपुष्पवृक्षेषु काननेषु सुगंधिषु ॥ गोष्टीकथाभिश्चित्राभिर्मध्याह्नं गमयेत्सुखी ॥ २५॥ और विचित्ररूप पुष्प, तथा वृक्षोंसे संयुक्त, और सुगंधवाले बगीचोंमें स्थितहुआ मनुष्य चित्र और क्रीडा करके संयुक्त हुई कथाओं करके मध्याह्नतक कालको राग द्वेष आदिस रहित हुआ व्यतीतकरे ॥ २५ ॥ गुरुशीतदिवास्वप्नस्निग्धाम्लमधुरांस्त्यजेत् ॥ तीक्ष्णांशुरतितीक्ष्णांशुीष्मे संक्षिपतीव यत् ॥ २६ ॥ और भारी--शीतल-दिनका-शयन-चिकना-खट्टा-मधुर-इन्होंको त्याग, क्योंकि ग्रीष्म, ऋतुमें अतितेज किरणोंवाला सूर्य होकर जगत्के स्नेहको संक्षपित करताहै ॥ २६ ॥ प्रत्यहं क्षीयते श्लेष्मा तेन वायुश्च वर्द्धते ॥ - अतोऽस्मिन् पटुकटुम्लव्यायामार्ककरांस्त्यजेत् ॥ २७॥ तिसकरके नित्यप्रति कफ घटता है, और वायु बढता है, इसवास्ते इस ग्रीष्मकालमें-लवणकटु-खट्टा-ये रस और कसरत-सूर्यके किरण-इन सबोंको त्यागै ॥ २७ ॥ भजेन्मधुरमेवान्नं लघुस्निग्धं हिमं द्रवम् ॥ सुशीततोयसिक्ताङ्गो लिह्यासक्तून्सशर्करान् ॥ २८॥ परन्तु इस ग्रीष्ममें मधुर-हलका-चिकना-शीतल-द्रवरूप-अन्न ग्रहणकरै और शीतलपानी करके स्नानकरनेवाला वह मनुष्य खांडकरके मिले हुये सत्तुओंको खाता रहै ॥ २८ ॥ मद्यं न पेयं पेयं वा स्वल्पं सुबहुवारि वा॥ अन्यथा शोफेशैथिल्यदाहमोहान्करोति तत् ॥ २९॥. For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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