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सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (२९) अंगारके तापसे संतप्तकिये पृथिवीके गर्मसे संयुक्तस्थानमें रहनेवाले मनुष्यके शीत और कठो. रतासे जनित दोप कबीभी नहीं उपजते हैं अर्थात् शीतकालमें स्थानको अग्निसे गरम करले उसमें रहै ॥ १६॥
अयमेव विधिः कार्यः शिशिरेऽपि विशेषतः॥
तदा हि शीतमधिकं रौक्ष्यं चादानकालजम् ॥ १७ ॥ यही विधि विशेष करके शिीशरऋतुमें भी करना तब आदान कालसे उपजा शीत और रूक्षताकी अधिकता होती है ॥ १७ ॥
कफश्चितो हि शिशिरे वसन्तेऽकांशुतापितः॥
हत्वाऽग्निं कुरुते रोगानतस्तं त्वरया जयेत् ॥ १८ ॥ शिशिरऋतुमें कफका संचय होता है, पीछे वसंतऋतुमें सूर्यके किरणोंकरके तापित हुआ वही कफ जठराग्निको हतकरके रोगोंको करता है, इसवास्ते तिस कफको शीग्रही जीतना योग्य है।।१८॥
तीक्ष्णैर्वमननस्यायैर्लघुरूक्षैश्च भोजनैः । - व्यायामोद्वर्त्तनाघातर्जित्वा श्लेष्माणमुल्बणम् ॥ १९ ॥
तीक्ष्णरूप वमन-नस्य-विरेचन-आदिकरके हलके और रूक्ष भोजनोंकरके और कसरत-- उद्वर्त्तन पैरोंका उपघात करके बढे हुये कफको जीतकर ॥ १९ ॥
स्नातोऽनुलिप्तः कर्पूरचन्दनागुरुकुङ्कुमैः॥
पुराणयवगोधूमक्षौद्रजाङ्गलशूल्यभुक् ॥२०॥ पीछे स्नान करे और कपूर चंदन अगर केसर इन्होंका अनुलेपं करै, पीछे पुराने यव--गेहूं-- शहद--जांगलदेशका शूलपर भुना मांस--इन्होंका भोजन करै ॥ २० ॥
सहकाररसोन्मिश्रानास्वाद्य प्रिययार्पितान् ॥
प्रियास्यसङ्गसुरभीन् प्रियानेत्रोत्पलाकितान् ॥ २१ ॥ अति सुगंधित आमके रससे मिश्रित और प्रियाकरके आर्पित और प्रियाके मुखसे संगकरके सुगंधित और प्रियाके नेत्ररूपी कमलोंकरके चिन्हित ।। २१ ॥ .. सौमनस्यकृतो हृद्यान वयस्यैः सहितः पिबेत् ॥
निर्गदानासवारिष्टसीधुमार्कीकमाधवान्॥२२॥ और चित्तकी प्रसन्नताको करनेवाले और मनोहर ऐसे औषध--आसव--आरिष्ट-मुनक्काके रसकी मंदिरा-माधव अर्थात् शहदकरके संस्कृत किये पदार्थ-इन्होंका प्रथम कुछ स्वाद लेकर पीछे समानअवस्थावाले मनुष्योंके संग बैठकर पान करै ।। २२ ॥
शृङ्गवेराम्बु साराम्बु मध्वम्बु जलदाम्बु वा॥
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