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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८) अष्टाङ्गहृदयेइसकालमें रात्रियोंकी दीर्घता होनेसे प्रभातमें बुभुक्षित हुवा मनुष्य मलमूत्र आदि अवश्य कार्यको संपादितकर पीछे वातनाशक तेल आदिकी मालिस करे ॥९॥ वातघ्नतैलैरभ्यङ्गं मूर्ध्नि तैलविमर्दनम् ॥ नियुद्धं कुशलैः साई पादाघातं च युक्तितः॥१०॥ वातनाशक तेलोंकरके मालिस करै, और शिरमें तेलको देवें, पीछे शरीरका मर्दन करवावै, पीछे कुशल मल्लोंके संग युद्ध अर्थात् बाहुयुद्धको करे पीछे युक्तिसे पैरोंके द्वारा बैंठक बारंबार करै ।। १०॥ कषायापहृतस्नेहस्ततः स्नातो यथाविधि ॥ कुङ्कुमेन सदर्पण प्रदिग्धोऽगुरुधूपितः ॥११॥ पछि लोध आदि कषाय द्रव्य करके शरीरकी चिकनाईको दूरकर, विधिपूर्वक स्नानकरे, पीछे केसर और कस्तूरी करके लेपकर, और अगरसे धूपित होवै ॥ ११ ॥ रसान् स्निग्धान् पलं पुष्टं गौडमच्छसुरां सुराम् ॥ गोधूमपिष्टमाषेक्षु क्षीरोत्थविकृतीः शुभाः॥ १२॥ फिर स्निग्ध रस अर्थात् मांसरस-पुष्टरूपमांस-गुडकी मदिरा-मदिराका मंड-मदिरा - गेहूं-उडद-ईख-दूधके--पदार्थ ॥ १२ ॥ नवमन्नं वसा तैलं शौचकार्ये सुखोदकम् ॥ प्रावाराजिनकौशेयप्रवेणीकौचवास्तृतम् ॥ १३ ॥ नवीन अन्न-वसा-तेल-इन्होंको सेये, और शौचक्रियामें गरम पानीको वर्ते पीछे रुईका वस्त्र-मृगछाला-रेशमीवस्त्र-निवार-रांकन-वस्त्रविशेषसे आस्तृत ॥ १३ ॥ उष्णस्वभावैलघुभिः प्रावृतः शयनं भजेत् ॥ युक्त्यार्ककिरणान् स्वेदं पादत्राणं च सर्वदा ॥ १४॥ शय्यापै उष्ण और हलके स्वभावोंवाला ओढकर शयन करै, और सूर्यकी किरणोंको तथा पसीनाको युक्ति करके सेवे, और जूती जोडेको तथा खडाऊको सबकालमें सेवतारहै ॥ १४ ॥ पीवरोरुस्तनश्रोण्यः समदाः प्रमदाः प्रियाः॥ हरन्ति शीतमुष्णाङ्ग्यो धूपकुंकुमयौवनैः ॥१५॥ पुष्टरूप जंघा-स्तन-कंट-वाली, मदसे संयुक्त, प्रिय और गरम अंगोवाली स्त्रिये अगरकी धूप और केसरके लेपकरके और यौवन अवस्था करके शीतको हरतीहैं ॥ १५ ॥ अंगारतापलन्तप्तगर्भभूवेश्मचारणः । शीतपारुष्यजनितो न दोषो जातु जायते॥ १६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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