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(८०२)
अष्टाङ्गहृदयेकनीनके बहिर्वम कठिनो ग्रन्थिरुन्नतः॥
ताम्रः पक्कोऽन्नपूयश्रुदलज्याध्मायते मुहुः ॥ २३ ॥ और कनीनकरोगमें वर्मके बाहिर कठिन और ऊंची ग्रंथि होजातीहै और तांबे सरीखी रुधिर और राधको झिरानेवालीहो और बारंबार आंशु पडतेहुये आध्मान होजावे ॥ २३ ॥
वान्तर्मासपिण्डाभः श्वयथुप्रंथितो रुजः ॥
सातैः स्यादर्बुदो दोषैर्विषमो बाह्यतश्चलः ॥ २४ ॥ और वर्मके भीतर मांसके समान पिंडकी आकृति हो सोजाहो ग्रथितहो पीडाहोऔर रुधिर सहित तीनों दोषोंकरके बाहिरसे चल और विषम अर्बुदरोगहै ॥ २४ ॥
चतुर्विंशतिरित्यते व्याधयो वर्त्मसंश्रयाः॥ ऐसे ये चौवीस २४ व्याधि वर्मके आश्रय होनेवाली हैं ॥
आद्योऽत्र भेषजैःसाध्यो द्वौ ततोऽर्शश्च वर्जयेत् ॥२५॥ पक्ष्मोपरोधो याप्यः स्याच्छेषाञ्छस्त्रेण साधयेत् ॥ इन्होंमें पहली व्याधि कृच्छ्रोन्मीलन नामवाली औषधोंसे साध्यहै और दो अर्शरोग वर्जितहैं और पक्ष्मोपरोधरोग याप्यहै बाकीके रोगोंको शस्त्रसे साधनकरै ॥ २५ ॥ कुट्टयेत्पक्ष्मसदनंछिन्द्यात्तेष्वपि चावि॒दम् ॥२६॥ भिन्द्यालगण कुम्भीकाविसोत्सङ्गानालजीः॥पोथकीश्यावसिकताश्लिष्टो क्लिष्टचतुष्टयम् ॥ सकर्दमं सबहलं विलिखत्सकुकूणकम्॥२७॥ तिन्होंमेंभी पक्ष्मसदनको सुईसे छेदै, और अर्बुदको वृद्धिपत्रादिकसे छेद नकरै ॥॥ २६ ॥ और लगण कुंभिका विष उत्संग अंजननामिका अलजीको व्रीहीमुखशस्त्रसे भेदनकर और पोथकी श्याव सिकता श्लिष्ट उक्लिष्ट ४ प्रकारके और कर्दम बहल कुकूणक इन ग्यारहरोगोंको विलेखितकर अर्थात् खुरचदे ॥ २७॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषार्टीकायां
उत्तरस्थाने अष्टमोऽध्यायः ॥ ८ ॥
नवमोऽध्यायः॥ अथातो वर्त्मरोगप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः। अब वर्मरोगप्रतिषेधनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे।
कृच्छ्रोन्मीले पुराणाज्यं द्राक्षाकल्काम्बुसाधितम् ॥ ससितं योजयस्निग्धं नस्यधूमाञ्जनादि च ॥१॥
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