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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (८०१) यद्वत्मोक्लिष्टमुक्लिष्टमकस्मान्म्लानतामियात् ॥
रक्तोदोषत्रयोत्क्लेशाद्वदन्त्युक्लिष्टवर्त्म तत् ॥ १६ ॥ और जो वर्म रक्तके उत्क्लेशसे अथवा दोषोंके उत्क्लेशसे क्लेशको प्राप्त होताहुआ हेतुके विनाही ग्लानिको प्राप्त होजावे, अर्थात् शूखजावे वह उक्लिष्ट वर्त्म रोग कहाताहै ॥ १६ ॥
श्याववर्त्म मलैः सास्त्रैः यावं रुक्कैदशोफवत् ॥ और रक्त सहित तीनों दोपोंकरके श्याव अर्थात् कपिशवर्णवाला पीडा और उल्लेदसे युक्त शो जासे युक्त वह श्याववर्त्म कहाताहै ॥
क्लिष्टाख्यवर्त्मनि श्लिष्टे कण्डूश्वयथुरागिणि॥ १७ ॥ और श्लिष्टवर्म रोगमें दोनों वर्त्म एक जगह मिले होवें तहां शोजा खाज राग इन्होंसे युक्त होजातहैं ॥ १७ ॥
वर्त्मनोऽन्तः खरा रूक्षाः पिटिकाः सिकतोपमाः॥
सिकतावम॑ कृष्णं तु कर्दमं कर्दमोपमम् ॥ १८ ॥ और वमके भीतर खरधरी रूखी पत्थरके किणोंके समान पिडिका जो हो। वह सिकतावद्म कहातीहै और कीचके सदृश जो कालेवर्णका वर्म होजावे वह कर्दमवर्म कहाताहै ॥ १८ ॥
बहलं बहुलैमासैः सवर्णैश्चीयते समैः॥ और घनरूप समानरूप मांसोंसे जो वर्त्म संचित कियाजावे वह बहलवर्म रोग कहाताहै ॥ कुकूणकः शिशोरेव दन्तोत्पत्तिनिमित्तजः॥१९॥ स्यात्तेन शिशुरुच्छूनताम्राक्षो वीक्षणाक्षमः॥स वर्त्मशूलपैच्छिल्यकर्णनासाक्षिमर्दनः ॥२०॥
और कुणरोग बालकहींके नेत्रोंमें होताहै क्योंकि यह रोग दांतोंकी उत्पत्तिका हेतुहै ॥ १९ ॥ तिसकरके वह बालक सूजी हुई और तांबेसरीखी लाल आंखोंवाला होजाताहै, और कछु देख नहीं सकताहै, और वर्मकी शूल तथा पिच्छिलतासे कान नासिका अक्षिको मसले गिरे ॥ २० ॥
पक्ष्मोपरोधे संकोचो वर्त्मनां जायते तथा।।खरतान्तर्मुखत्वं च लोनामन्यानि वा पुनः॥२१॥ कण्टकौरव तीक्ष्णाघृष्टं तैर क्षिसूयते॥उष्यते चानिलादिद्विडल्पाहः शान्तिरुद्धतः॥२२॥
और पक्ष्मोपरोध रोगमें वर्मोंका संकोच होजाताहै और खरधरापन भीतरको मुख ये होजातेहै और रोमोंके पास फिर अन्य रोम उपजजातेहैं ॥ २१ ॥ कांटोंके अग्रभाग सखि तीक्ष्ण तिन रामोंके घिसनेसे नेत्र सूजजाताहै. और अंतर्दाह हो तीव्र उष्मा हो और वात घाम आदिकोंसे द्वेषहो, और तिन्होंको उखाडनेसे थोडेही दिनों में शांतिहोजातीहै ॥ २२ ॥
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