________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
अष्टाङ्गहृदये
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ७८४)
मनुष्य छूटजाताहै ॥ ३० ॥ और बच हींग लहसन इन्होंको बकरेके मूत्रमें सिद्धकर नस्य अंज इन्होंमें युक्त करनेसे दैत्य ग्रह दूर होता है |
दैत्ये बलिर्वहुफलः सोशीरकमलोत्पलः ॥ ३१ ॥ और बहुतसे फल खश कमल इन्होंकी दैत्यको बलि देनी चाहिये ॥ ३१ ॥ नागानां सुमनोलाज गुडापूपगुडोदनैः ॥ परमान्नमधुक्षीरकृष्ण मृन्नागकेसरैः ॥३२॥ वचापद्मपुरोशीररक्तोत्पलदलैर्वलिः॥श्वे - तंपत्रंच रोधंच तगरं नागसर्षपाः ||३३|| शीतेन वारिणा पिष्टं नावनाञ्जनयोर्हितम् ॥
और नागोंके अर्थ पुष्प धानकी खील गुड पूडा भरत खीर शहद दूध कालीमट्टी नागकेशर ॥ ३२ ॥ वच कमल गूगल खश लालकमलके पत्ते इन्होंकी बलि देनी चाहिये और सफेद कमल लोध तगर वच नाग सिरसम ||३३|| इन्हों को शीतल जलमें पीस फिर नस्य देनी और अंजन डालना हित है।। यक्षाणा क्षीरदध्याज्या मिश्रकौदन गुग्गुलुः॥३४॥देवदारुत्पलं पद्ममुशीरं वस्त्रकाञ्चनम्॥ हिरण्यंच बलिर्योज्यो मूत्राज्यक्षीरमे कतः ॥ ३५ ॥ सिद्धं समोन्मितं पाननावनाभ्यञ्जने हितम् ॥ और यक्षोंको दूध दही घृत इन्होंसे मिला हुआ भात और गूगलकी बलि देनी चाहिये ॥ ३४ ॥ और देवदार कमल पद्माख खश सुवर्णसे भूषित वस्त्र सुवर्ण इन्होंकी भारी बलि देनी चाहिये और गोमूत्र घृत दूध इन्होंको समान भाग ले एक जगह || ३५ ॥ सिद्ध करे पीछे पान नस्य मालिस इन्होंमें वरना हित है |
हरीतकी हरिद्रे द्वे लशुनो मरिचं वचा ॥ ३६ ॥ निम्बपत्रंच वस्ताम्बुकल्कितं नावनाञ्जनम् ॥
और हरडे दोनों हलदी लहसन मिरच वच ॥ ३६ ॥ नबिके पत्ते इन्होंको बकरीके मूत्र में सिद्धकर नस्य और अंजनमें बरतना हित है |
ब्रह्मरक्षोवलिः सिद्धं यवानां पूर्णमाढकम् ॥ ३७ ॥ तोयस्य कुम्भः पललं छत्रं वस्त्रं विलेपनम् ॥
और ब्रह्मराक्षसके अर्थ सिद्ध किये हुए जवोंका पूर्ण आटक ॥ ३७ ॥ और जलका भरा हुआ कलश मांस छत्र वस्त्र प्रलेपन इन्होंकी बलि देनी चाहिये ||
गायत्रीविंशतिपलक्काथेऽर्द्धपलिकैः पचेत् ॥ ३८ ॥ त्र्यूषणत्रिफलाहिङ्गषग्रंथामिशिसर्षपैः ॥ सनिम्बपत्र लशुनैः कुडवान्सप्त सर्पिषः ॥ ३९ ॥ गोमूत्रे त्रिगुणे पाने नस्याभ्यङ्गेषु तद्धितम् ॥
For Private and Personal Use Only