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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७८५) और खैरके ८० अस्सी तोले क्वाथमें दो दो तोला प्रमाण ॥ ३८ ॥ त्र्यूषण अर्थात् संठ मिरच पीपल त्रिफला हींग वच सौंफ सिरसम नींवके पत्ते लहसन इन औषधोंको मिला और ११२ एकसौ बारा तोले घत मिला ॥ ३९ ॥ और तिगुना गोमूत्र मिला फिर इन्होंको सिद्धकरै यह धृत पान नस्य मालिस इन्होंमें वरतना हितहै ।।
रक्षसां पललं शुक्नं कुसुमं मिश्रकौदनम् ॥ ४०॥
वलिः पक्काममांसानि निष्पावा रुधिरोक्षिताः॥ और राक्षसोंको मांस सफेद पुष्प मिलाहुआ मांस ॥ ४०॥ पका और कच्चामांस रुधिरसे सींचे हुये मोठ इन्होंकी बलि देनीचाहिये ॥
नक्तमालशिरीषत्वङ्मृलपुष्पफलानिच॥४१॥तद्वच्चकृष्णापाटल्याविल्वमूलंकटुत्रिकम्॥हिग्विन्द्रयवसिद्धार्थलशुनामलकी फलम् ॥ ४२ ॥ नावनाञ्जनयोर्योज्यो बस्तमूत्रहृतो गदः॥
और सहोजना शिरसकी छाल मूल पुष्प फल ।। ४१ ॥ काली पाटलाका वृक्ष वेलगिरीको मूल सूठ मिरच पीपल हींग इंद्रजव सिरसम लहसन आँवला ॥ ४२ ॥ इन्होंको बकराके मूत्रमें सिद्धकर नस्यमें और अंजनमें यह औषध वरतना चाहिये ।।
एभिरेव घृतं सिद्धं गवां मूत्रे चतुर्गुणे ॥४३॥
रक्षोग्रहान्वारयते पानाभ्यञ्जननावनैः॥ और इनही औषधोंमें चौगुने गोमूत्रमें सिद्धकिया हुआ घृत ॥ ४३ ॥ पान मालिस नस्य इन्हें करके राक्षसग्रहोंका निवारण करताहै ।
पिशाचानां बलिः सीधुपिण्याकः पललं दधि॥४४॥मूलकं ल. वणं सर्पिः सभूतौदनयावकम्॥हरिद्राद्वयमञ्जिष्टामिशिसैन्धव नागरम् ॥४५॥ हिंगु प्रियंगु त्रिकटुरसोनत्रिफलावचा।पाटलाश्वेतकटभीशिरीषकुसुमैघृतम्॥४६॥गोमूत्रपादिकं सिद्धं पानाभ्यञ्जनयोहितम् ॥ वस्ताम्बुपिष्टैस्तैरेव योज्यमंजननावनम् ॥४७॥
और पिशाचोंको मदिरा खल मांस दही इन्होंकी बलिदेनी चाहिये ।। ४४ ॥ और मूली नमक घृत और भूतौदन अर्थात् दही हलदी सत्तू लाही तिल इन्होंकरके युक्त मोहनभोग दोनों हलदी मँजीठ सौंफ सेंधानमक झूठ ।। ४५ ॥ हींग मालकांगनी सूंठ मिरच पीएल लहसन त्रिफला वच पाटलवृक्ष सफेद चिरमठी शिरसके फूल इन्होंमें चौथे हिस्सेका गोमूत्र मिला घृतको सिद्धकरे।।४।।
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