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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७८३) स्लानवस्त्रवसामासमद्यक्षारगुडादि च ॥
रोचते यद्यदा येभ्यस्तत्तेषामाहरेत्तदा ॥ २२ ॥ और स्नान वस्त्र वसा मांस मदिरा दूध गुड इत्यादिक जो २ जिन ग्रहोंको रोचै वही वही तिन्होंके अर्थ देने चाहिये ।। २२ ॥
रत्नानि गन्धमाल्यानि बीजानि मधुसर्पिषी॥
भक्ष्याश्च सर्वे सर्वेषां सामान्यो विधिरित्ययम् ॥ २३ ॥ __और रत्न गंध माल्य इंद्रयव आदिक शहद घृत ये सब लब ग्रहोंके भक्ष्यहैं अर्थात् भोजन करनेलायक हैं यह सामान्य विधिहै ॥ २३ ॥
सुरर्षिगुरुवृद्धेभ्यः सिद्धेभ्यश्च सुरालये ॥ दिश्युत्तरस्यां तत्रा पि देवायोपहरेइलिम् ॥ २४ ॥ पश्चिमायां यथाकालं दैत्यभू ताय चत्वरे॥ गन्धर्वाय गवां मार्गे सवस्त्राभरणं बलिम्॥२५॥ पितृनागग्रहे नयां नागेभ्यः पूर्वदक्षिणे ॥ यक्षाय यक्षायतने सरितोर्वा समागमे ॥२६॥चतुष्पथे राक्षसाय भीमेषु गहनेषु च ॥ रक्षसां दक्षिणस्यां तु पूर्वस्यां ब्रह्मरक्षसाम् ॥ २७॥ शून्यालये पिशाचाय पश्चिमां दिशमास्थिते॥
और देवता ऋषि गुरु वृद्ध सिद्ध इन्होंके अर्थ देवताके मंदिरमें और तहांभी उत्तर दिशाको तर्फ देवताके अर्थ बलि देव ॥ २४ ॥ और दैत्य भूतके अर्थ कालके अनुसार चौराहौंमें पश्चिम दिशाकी तर्फ बलि देवै और गंधर्वके अर्थ गौओंके मार्गमें वस्त्र और आभूषणसे युक्त बलि देवै ॥ २५ ।। और पितर नाग ग्रहके अर्थ नदीप बलिदान देखें और नागोंके अर्थ पूर्व दक्षिणकी कोणमें बलिदेवे और यक्षके अर्थ यक्षमंदिरमें अथवा नदीपे बलिदान देवै ॥ २६ ॥ राक्षसके अर्थ भयानक गहन चौराहोंमें बलि देवै और रक्षोंके अर्थ दक्षिणदिशामें और ब्रह्मराक्षसके अर्थ पूर्वदिशामें बलि देवै ॥ २७ ॥और पिशाचके अर्थ सूने मकानमें पश्चिमकी तर्फ बलिदेवै ॥
शुचिशुक्कानि माल्यानि गन्धाः क्षैरेयमोदनम् ॥ २८ ॥
दधि च्छत्रं च धवलं देवानां बलिरिष्यते ॥ और पवित्र सफेद पुष्प गंध दूधका भोजन ।।२८॥ दही सफेद छत्र यह देवताओंकी बलिहै ।। हिमुसर्षपषड्ग्रन्थाव्योषैरर्द्धपलोन्मितैः ॥२९॥ चतुर्गुणे गवां मूत्रे घृतप्रस्थं विपाचयेत्। तत्पाननावनाभ्यङ्गैवग्रहविमोक्षणम् ॥ ३०॥ नस्याञ्जनं वचा हिङ्गु लशुनं बस्तवारिणा ॥
और हींग सिरसम वच सूंठ मिरच पीपल इन्होंको दो दो तोला प्रमाणलेवे ॥ २९ ॥ फिर चौगुने गोमूत्रमें चौंसठ ताले घृतको पकावै पीछे इसका पीना नस्य मालिश ये करनेसे देवग्रहोंसे
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