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(७८२)
अष्टाङ्गहृदयेऔर विंदौला मयूरका चन्दा शिवपै चढाहुआ निर्माल्य तथा गंगाजल वरुवा दालचीनी जटामांसी बहेडा वच बाल साँपकी कांचली हाथीदांत हींग लींग मिरच इन्होंको समान भाग ले धूप बनाके लेनेसे स्कन्द उन्माद पिशाच राक्षस देवता इन्होंके आवेशसे उत्पन्न हुये ज्वरका नाश होताहै॥१८॥ त्रिकटुकदलकुङ्कुमग्रन्थिकक्षारसिंहीनिशादारुसिद्धार्थयुग्मा म्बुशुक्राव्ययैः ॥ सितलशनफलत्रयोशीरतिक्तावचातुत्थयष्टी बलालोहितैलाशिलापद्मकैः॥ दधितगरमधूकसारप्रियाह्वानि शाख्याविषातायशेलैः सचव्यामयैः ॥ कल्कितैर्वृतमभिनव मशेषमूत्रांशसिद्धं मतं भूतरावाह्वयं पानतस्तग्रहघ्नं परम् ॥१९॥
संठ मिरच पीपल तेजपात केशर ग्रंथिपर्णी जवाखार कटेहली हलदी देवदार दोनों सिरसम नेत्रवाला इंद्रयव सफेद लहसन त्रिफला खश कुटकी बच नीलाथोथा मुलहटी खरेहटी मजीठ इलायची मनसिल पद्माख दही तगर महुआकासार मालकागनी अतीश काकोली रसोत शिलाजीत चव्य कूठ इन सब औषधोंका कल्क बना तिसमें घृतको सिद्धकरै और इसनवीन घतको आठों मत्रमें सिद्धकरे यह भूतराव नामवाला घृतहै यह पीनेसे सब ग्रहोंका नाश करताहै ॥ १९ ॥
नतमधुकरञ्जलाक्षापटोलीसमगावचापाटलीहिंगुसिद्धार्थसिं हीनिशायुगलतारोहिणी ॥ बदरकटुफलत्रिकाकाखमास्कृमि नाजगन्धामराङ्कोल्लकोशातकीशिग्रुनिम्बाम्बुदेन्द्रायः॥गद शुकतरुपुष्पवीजोग्रयष्ट्यद्रिकर्णीनिकुम्भाभिविन्यःकल्कि तैर्मूत्रवर्गेण सिद्धं धृतम्॥विधिविनिहितमाशु सवैःक्रमैयोजितं हन्ति सर्वग्रहोन्मादकुष्ठज्वरांस्तन्महाभूतरावं स्मृतम्॥ २०॥
और तगर शहद करंजुआ लाख परवल मंजीठ वच पाटलीवृक्ष हींग सिरसम कटेहली दोनों हलदी मालकांगनी हरडै बेर कुटकी त्रिफला थोहर देवदार वायविडंग तुलसी गिलोय अंकोल कडुइ तोरी सहोजना नींव नागरमोथा इंद्रजब कूठ शिरसके फूल और बीज वचनाग मुलहटी गिरिकर्णी जमालगोटाको जड चीता वेलगिरी इन्होंको समानभाग ले कल्क बनाके तिस कल्करें और मूत्रवमें घृतको सिद्धकरै फिर विधिसे युक्त कियाहुआ यह घृत संपूर्ण ग्रह उन्माद कुष्ट ज्वर इन्होंको नाशताहै यह महाभूतराव नामवाला वृतहै ॥ २० ॥
ग्रहा गृह्णन्ति ये येषु तेषां तेषु विशेषतः॥ दिनेषु बलिहोमादीन्प्रयुञ्जीत चिकित्सकः॥२१॥ और जिन २ दिनोंमें ग्रह मनुष्यको ग्रहण करतेहैं विशेष करके तिनही २ दिनोंमें वैद्यजन बलि होम इत्यादिकोंको करवावै ॥ २१ ॥
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