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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७८०) अष्टाङ्गहृदयेहिंगुव्योषालनेपालीलशुनार्कजटाजटाः॥ अजलोमी सगोलोमी भूतकेशी वचा लता॥२॥ कुछटी सर्पगन्धाख्या तिलाः काल विषाणिके ॥ बज्रप्रोक्तावयस्थाच शृङ्गी मोहनवल्लयपि॥३॥ स्रोतोजांजनरक्षोन्नं रक्षोन्नं चान्यदौषधम् ॥ खराश्वश्वा विदुष्टसंगोधानकुलशल्यकान् ॥४॥ द्वीपिमार्जारगोसिंहव्याघ्र सामुद्रसत्वतः॥ चर्मपित्तद्विजनखा वर्गेऽस्मिन्साधयेद्धृतम् ॥५॥ पुराणमथवा तैलं नवं तत्पाननस्ययोः॥अभ्यङ्गे च प्रयोक्तव्यमेषां चूर्णं च धूपने ॥६॥ एभिश्च गुटिकां युंज्यादाने सावपीडने ॥ प्रलेपे कल्कमेतेषां काथं च परिषेचने ॥ ७॥ प्रयोगोयं ग्रहोन्मादान्सापस्माराञ्छमं नयेत् ॥ और हींग हरताल सूंठ मिरच पीपल कस्तूरी आककी जड जटामांसी तुलसी सफेददूब मांसी वच मालकांगनी ॥ २ ॥ और कुरडू नाकुली तिल काकोली क्षीरकाकोली सफेदडाभ गिलोय अतीश मोहनबेल ॥ ३॥ रसोत अंजन गूगल और अन्य रक्षोन औषध और गधा अश्व मूसा ऊंट रीछ गोह नकुल सेह ॥ ४ ॥ गैंडा बिलाव सिंह भेडा और समुद्रके जीव इन्होंकी चाम पित्ता दांत नख इन सबोंको लेके फिर इस वर्गमें पुराने घृतको सिद्धकरै ॥ ५ ॥ अथवा नवीन तेलको सिद्धकरै पीछे इस तेलको पानमें और नस्यमें वरते और मालिसमें वरते और इनही सब औषधोंका चूर्ण धूपदेनेमें बरतना उचितहै ॥ ६ ॥ और इन्हीं औषधोंकी गुटिका बना अंजनमें और अवपीडनमें युक्त करनी चाहिये इन्होंके कल्कका लेपकर और काथका परिषेक करना चाहिये ॥ ७ ॥ ऐसे यह प्रयोग ग्रह उन्माद अपस्मार इन्होंकी शांतिको प्राप्त करताहै ॥ गजाह्वापिप्पलीमूलव्योषामलकसर्षपान् ॥ ८॥ गोधानकुलमार्जारझषपित्तप्रपेषितान ॥ नावनाभ्यङ्गसेकेषु विदधीत ग्रहापहान् ॥ ९॥ और गजपीपल पोहकरमूल सूंठ मिरच पीपल आंवला सिरसम ॥ ८ ॥ इन औषधोंको गोह नकुल बिलाव मच्छ इन्होंके पित्तेमें भावना दे पीछे इसको नस्य मालिस सेंक इन्होंमें युक्त करै यह ग्रहोंको नाशता है ॥९॥ सिद्धार्थकवचाहिंगु प्रियंगुरजनीद्वयम् ॥ मञ्जिष्ठा श्वेतकटभी वचा श्वेताद्रिकर्णिका ॥१० ॥ निम्बस्य पत्रं बीजंतु नक्तमाल शिरीषयोः॥सुराई न्यूषणं सर्पिोमूत्रे तैश्चतुर्गुणे॥११॥सिद्धं सिद्धार्थकं नाम पाने नस्यै च योजितम्॥ ग्रहान्सान्निहन्त्या For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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