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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७७९ ) और जो जल अन्न इन्होंको मांगता फिरै और त्रस्त तथा लालनेत्र होवे और उग्रवचन बोले, ऐसा मनुष्य औकिरणग्रहसे पीडित जानना ॥ ३९ ॥ गन्धमाल्यरति सत्यवादिनं परिवेपिनम् ॥ बहुच्छिद्रं च जानीयाद्वेतालेन वशीकृतम् ॥४०॥ और गंधमालाको धारणरक्खै, सत्यवचन बोले और कांपतारहै और बहुतसे छिद्रकरै, ऐसा पुरुष वैतालसे गृहीत जानना ॥ ४० ॥ अप्रसन्नदृशं दीनवदनं शुष्कतालुकम्।।चलन्नयनपक्ष्माणं निद्रालु मन्दपावकम् ॥४१॥ अपसव्यपरीधानं तिलमासगुडप्रियम् ॥ स्खलद्वाचं च जानीयात्पितृग्रहवशीकृतम् ॥ ४२ ॥ और जिसके नेत्र स्वच्छ नहीं होवें और गरीब मुख रहै और तालुवा सूख जावे और नेत्र तथा पलक चलायमान हो। निद्राआवे और जठराग्नि मंद होवे ॥ ४१ ॥ और अपसव्य परिधान रक्खै और तिल मांस गुडमें प्यार रखरखे स्खलितहुआ वचन बोले ऐसा पुरुष पितरोंसे गृहीत जानना॥४२॥ गुरुवृद्धर्षिसिद्धाभिशापचिन्तानुरूपतः॥ व्याहाराहारचेष्टाभिर्यथास्वं तद्ग्रहं वदेत् ॥४३॥ और गुरु वृद्ध ऋषि सिद्धके शापसे चिंतासे अनुरूप होनेसे व्यवहार आहार इन्होंकी चेष्टाओंके अनुसार तिसी ग्रहको कहै ॥ ४३ ॥ कुमारवृन्दानुगतं नग्नमुद्धतमूर्द्धजम् ॥ अस्वस्थमनसं दैर्ध्यकालिकं तं ग्रहं त्यजेत् ॥४४॥ और जो बालकोंके समूहमें अनुगतरहै और नंगारहै और मस्तकके बालोंको कंपावै और स्वस्थमन नहींरहै दीर्घकालसे शरीरमें व्याप्तहुआहो ऐसे ग्रहको त्यागदेवै अर्थात् यह असाध्यहै।॥४४॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकाया मुत्तरथाने चतुर्थोऽध्यायः ।। ४ ।। पंचमोऽध्यायः। अथातो भूतप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर भूतप्रतिषेधनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे ॥ भूतं जयेदहिंसेच्छं जपहोमबलिव्रतैः॥ तपः शीलसमाधानज्ञानदानदयादिभिः॥१॥ नहीं मारनेकी इच्छा करनेवाले भूतको जप होम बलि तसे जीतै और तप शील समाधान ज्ञान दया इत्यादिकोंसे जीते ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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