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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७७५ ) होममन्त्रवलीज्यानां विगुणं परिकम चासमासादिनचर्यादिप्रोक्ताचारव्यतिक्रमः॥८॥ और छिद्रनाम पापक्रियाके आरंभका है, वह अशुभ कर्म फलका पाकहै और अकेला शून्य मकानमें स्थिति रक्खै, अथवा रात्रीमें श्मशान आदिकोंमें स्थिति रक्खै ॥६॥ और नग्न रहै, गुरुकी निंदाकर और रतिका सेवन अविधिसे करै, और अशुद्धिकरके देवता आदिकोंक्या पूजनकरै, और पराये सूतकमें मिलारहै ॥ ७ ॥ और होम मंत्र बलिपूजन इन्होंको उलटी तरहसे करे, और दिनचर्या आदि कही हुई विधिको उलटी तरहसे वर्ते ॥ ८॥ गृहन्ति शुकप्रतिपत्रयोदश्योः सुरा नरम् ॥ शुक्लत्रयोदशीकष्णद्वादश्योर्दानवा ग्रहाः॥९॥ गन्धर्वास्तु चतुर्दश्यां द्वादश्यां चोरगाः पुनः॥पञ्चम्यां शुक्लसप्तम्येकादश्योस्तु धनेश्व राः॥ १०॥शुक्लाष्टपञ्चमीपूर्णमासीषु ब्रह्मराक्षसाः॥ कृष्णे रक्षःपिशाचाद्या नवद्वादशपर्वसु ॥११॥ दशामावास्ययोरष्ट नवभ्योः पितरोऽपरे ॥ गुरुवृद्धादयः प्रायः कालं सन्ध्यासु लक्षयेत् ॥ १२॥ और विशेषकरके शुक्लपक्षकी प्रदिपदाको और त्रयोदशीको मनुष्यको देवते ग्रहण करतेहैं, और शुक्लपक्षकी त्रयोदशीको और कृष्णपक्षकी द्वादशीको दानव ॥ ९ ॥ और गंधर्व चतुर्दशीको तथा द्वादशीका ग्रहण करतेहैं, और पंचमीके दिन दिव्य सर्प और शुक्लपक्षकी सप्तमीको और एकाद शीको यक्ष ग्रहण करतेहैं ॥ १० ॥ और शुक्लपक्षकी अष्टमीको पंचमीको और पूर्णमासीको ब्रह्म राक्षस ग्रहण करतेहैं, और कृष्णपक्षकी नवमी द्वादशी अमावास्याको राक्षस पिशाच आदिक ग्रहण करतेहैं ॥ ११ ॥ और दशमी आमावास्या अष्टमी नवमीको पितर मनुष्योंको ग्रहण करतेहैं, और गुरु वृद्ध आदिक अष्टमी नवमीको ग्रहण करतेहैं, और विशेषकरके ये सब संध्याकालमें मनुष्यको ग्रहण करतेहैं ॥ १२ ॥ फुल्लपोपममुखं सौम्यदृष्टिमकोपनम् ॥ अल्पवाक्स्वेदविप्रमूत्रं भोजनानभिलाषिणम् ॥१३॥ देवद्विजातिपरमं शुचिसंस्कृतवादिनम् ॥ मीलयन्तं चिरान्नेत्रे सुरभिं वरदायिनम् ॥ ॥१४॥ शुक्लमाल्याम्बरसरिच्छलोच्चभवनप्रियम् ॥ अनिद्रमप्रधृष्यं च विद्यादेववशीकृतम् ॥ १५॥ और फूले हुए कमलके समान मुखवाला सौम्यदृष्टिवाला और कोपसे रहित और थोडा बोलनेवाला थोडे स्वेद विष्ठा मूत्र उतरै भोजनका अभिलाषी होवे॥१३॥ और देवता ब्राह्मणमें तत्पर और For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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