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(७६८)
अष्टाङ्गहृदये- . आध्मानं पाणिपादास्यस्पन नं फेननिर्गमः॥तृण्मुष्टिबन्धातीसारस्वरदैन्यविवर्णताः॥१२॥ कूजनं स्तननं छर्दिः कासाहिध्माप्रजागरा॥ओष्ठदंशाङ्गसङ्कोचस्तम्भवस्तामगन्धताः॥१३॥ ऊर्ध्वं निरीक्ष्य हसनं मध्ये विनमनं ज्वरः। मृछैकनेत्रशोफश्च नैगमेषग्रहाकृतिः ॥ १४ ॥ अफारा और हाथ पैर मुखका फरकना और झागोंका वमन तृषा और मुष्टोका बंधा और अतिसारस्वरकी दीनता वर्णका बदल जाना ॥१२॥ शब्द करना दैवशब्दका करना छर्दि खांसी हिचकी जागना और अंगोंका डशना अंगोंका संकोच और स्तंभ और बकरेकी समान कचा गंधपना ॥ १३॥ और ऊपरको देखके हसना और मध्यमें विशेषकरके नयजाना ज्वर और मूर्छा और एक नेत्रपै शोजा यह नैगमेष अर्थात् मेषाख्य ग्रहके लक्षण हैं ॥ १४ ॥
कफो हृषितरोमत्वं स्वेदश्चक्षुर्निमीलनम् ॥ वहिरायामनं जि द्वादशोऽन्तःकण्ठकूजनम्॥१५॥ धावनं विट्सगन्धत्वं क्रोशनं श्वानवच्छनिः॥रोमहर्षो मुहुस्त्रासः सहसा रोदनं ज्वरः॥१६॥ कासातिसारवमथुजम्भातृच्छवगन्धताः॥अङ्केष्वाक्षेपविक्षेपः शोषस्तम्भविवर्णताः ॥१७॥मुष्टिबन्धः स्तुतिश्चाक्ष्णो वालस्य स्युः पितृग्रहे ॥ का और रोमांचका होना पसीना और नेत्रोंका मांचना और बाहिरको नयजाना कंठ और जीभका डशना और भीतरसे बोलना और दौडना और विष्टामें दुर्गधता और घरमें स्थितहुये कुत्तेकी तरह कंप आदिसे संयुक्तहोकर पुकारना ॥ १५ ॥ और रोमांच होना और बारंबार उद्वेग और वेगसे रोना और उबर ।। १६ ॥ और खांसी अतिसार छर्दि जंभाई तृषा मुरदाके समान गंधका उपजना अंगोंमें आक्षेप और विक्षेप और शोष स्तम्भ वर्णका बदलजाना ॥ १७ ॥ और मुष्टिका बंध नेत्रोंमें झिरना ये सब पितृग्रहसे पीडित बालकके लक्षण होतेहैं ॥
स्त्रस्तांगत्वमतीसारो जिह्वातालुगले व्रणाः॥१८॥ स्फोटाः सदाहरुक्पाकाः सन्धिषुस्युःपुनः पुनः॥निश्यह्नि प्रविलीयन्ते पाको वक्के गुदेऽपिवा।।१९॥भयंशकुनिगन्धत्वं ज्वरश्च शकुनिग्रह।।
और अंगोंकी शिथिलता और अतीसार आर जीभ तालु गल इन्होंमें घाव ॥ १८ ॥ और संधियोंमें दाह शूल पाक इन्होंसे संयुक्त हुये फोडे और बारंबार दिनमें तथा रात्रीमें फोडोंका विशेष करके लीनपना गुदामें अथवा मुखमें पाक ॥ १९ ॥ भय और पक्षिके समान गंधका होजाना और ज्वर ये सब शकुनिग्रहसे पीडित बालकके लक्षण होतेहे ॥
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