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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७६९) पूतनायां वमिः कम्पस्तन्द्रा रात्रौ प्रजागरः ॥ २० ॥ हिध्माध्मानं शकृनेदः पिपासा मूत्रनिग्रहः॥
त्रस्तहृष्टाङ्गोमत्वं काकवत्पूतिगन्धता ॥२१॥ और पूतनादोषमें छर्दि कंप तंद्रा रात्रीमें जागना ॥ २० ॥ हिचकी अफारा विष्ठाका भेद और पानीको पानेकी इच्छा मूत्रका बंधा और शिथिलरूप अंगोंका होजाना और रोमांच और काककी तरह दुर्गंधका होजाना ॥ २१ ॥
शीतपूतनया कम्पो रोदनं तिर्यगीक्षणम् ॥ तृष्णान्त्रकूजोऽतीसारो वसावद्विस्रगन्धता ॥ २२ ॥
पार्श्वस्यैकस्य शीतत्वमुष्णत्वमपरस्य च ॥ शीतपूतनाकरके जुष्टहुये बालकके कंप, रोना तिरछा देखना और तृषा और आंतोंका बोलना और अतिसार और वसाकी तरह कचा गंधपना ॥ २२ ॥ एक पशलीकी शीतलता और दूसरी पशलीकी उष्णता होतीहै ॥
अन्धपूतनया छर्दिव॑रः कासोऽल्पवह्निता ॥२३॥ वर्चसो भेद वैवर्ण्यदौर्गन्धान्यङ्गशोषणम् ॥ दृष्टिसादोऽतिरुक्कण्डूपोथकीजन्मशून्यताः ॥२४॥ हिमोद्वेगस्तनद्वेषवैवयं स्वरतीक्ष्णता ॥ वेपथुमत्स्यगन्धित्वमथवा साम्लगन्धिता ॥२५॥
और अंधपूतनाकरके छार्दै वर खांसी मंदाग्नि ॥ २३ ॥ विष्टाका भेद विवर्णता दुर्गंधपना और अंगका शोष और दृष्टिका मंदपना और अत्यंत शूल और खाज पोथकीकी उत्पत्ति शून्यपना ॥ २४ ॥ हिचकी उद्वेग दूधका न पीना वर्णका बदलना स्वरकी तीक्ष्णता और कम्प और मछलीके समान गंधपना अथवा खटाई सहित गंधपना ॥ २५॥
मुखमण्डितया पाणिपादस्य रमणीयता ॥ शिराभिरसिताभाभिराचितोदरता ज्वरः॥ २६॥
अरोचकोऽङ्गग्लपनं गोमूत्रसमगन्धता ॥ मुखमंडितग्रहकरके हाथ और पैरका रमणीयपना और सफेदपनेसे रहित कांतिवाला नाडियोंकरके व्याप्त पेटका होजाना और ज्वर ॥ २६ ॥ और अरोचक और अंगोंमें ग्लानि गोमूत्रके समान गंधका होजाना ॥
रेवत्यां श्यावनीलत्वं कर्णनासाक्षिमर्दनम् ॥ २७ ॥ कासहिध्माक्षिविक्षेपवक्रवक्रत्वरक्तताः ॥ बस्तगन्धो ज्वरः शोषः पुरीषं हरितं द्रवम् ॥ २८॥ ४९
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