________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(७६७)
उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । सामान्य रूपमुत्रासजृम्भाभूक्षेपदीनताः॥फेनस्रावोर्ध्वदृष्टयो ष्टदन्तदंशप्रजागराः॥४॥रोदनं कूजनं स्तन्यविद्वेषः स्वरवैकृतम् ॥ नखैरकस्मात्परितः स्वधाव्यङ्गविलेखनम् ॥५॥
और तिन्होंका सामान्य रूप अत्यंत उद्वेग जंभाई भ्रुकुटियोंका आक्षेप दीनना झागोंका स्त्राव ऊपरको दृष्टी होटको दांतोंकरके डशना अतिशयकरके जागना ॥ ४ ॥ रोना शब्दकरना धायके दूधमें अरुचि स्वरकी विकृति कारणके विना आपही सब तरफसे अपनी धायके अंगोको झोरना॥५॥
तत्रैकनयनस्त्रावी शिरो विक्षिपते मुहुः ॥ हतैकपक्षःस्तब्धांगः सस्वेदो नतकन्धरः॥६॥ दन्तखादी स्तनद्वेषी त्रस्यन् रोदिति विस्वरः॥ वक्रवत्रो वमेल्लालां भृशमूर्ध्वं निरीक्षते ॥७॥ तहां एक नेत्रको झिरानेवाला और वारंवार शिरको फेंकनेवाला और हतहुये एक पक्षवाला और स्तब्धहुये अंगोंवाला और पसीनासे संयुक्त और नमितहुई ग्रीवावाला ॥ ६ ॥ और दांतोंको चाबनेवाला और दूध द्वेषकरनेवाला और उद्वेगको प्राप्तहुआ रे और विगत स्वरवाला कुटिल मुखवाला, लालोंका वमनकर,अतिशयकरके ऊपरको देखे ॥ ७ ॥
वसासृग्गन्धिरुद्विग्नो बद्धमुष्टिशकृच्छिशुः॥चलितैकाक्षिगण्डभ्रूः संरक्तोभयलोचनः ॥८॥स्कन्दातस्तेन वैकल्यं मरणं वा भवेद्धृवम् ॥ वसा और रक्तके समान गंधवाला और बंधीहुई मुष्टी और बंधाहुआ विष्ठावाला और चलित रूप एकतरफके नेत्र कपोल भ्रुकुटीवाला और सम्यक् प्रकारसे लालरूप दोनों नेत्रोंवाला ॥ ८॥ बालक स्कंदग्रहसे पीडित होताहै तिसकरके निश्चय विकलपना अथवा मरण होजाताहै ॥
संज्ञानाशो मुहुः केशलुञ्चनं कन्धरानतिः॥९॥ विनम्यजम्भ माणस्यशकृन्मूत्रप्रवर्त्तनम्।फेनोद्वमनमूर्बेक्षाहस्तभ्रंपादनतनम्॥ १०॥ स्तनस्वाजिह्वासंदंशसंरम्भज्वरजागराः। पूयशोणितनन्धश्चस्कन्दापस्मारलक्षणम् ॥ ११ ॥
और संज्ञाका नाश और बारंबार बालोंको नोंचना और ग्रीवाका नयजाना ॥ ९॥ और नय करके जंभाई लेते हुये विष्टा और मूत्र की प्रवृत्ति होना और झागेका वमन और ऊपरको देखना और हाथ भ्रुकुटीका नचाना ॥ १०॥ धायको स्तनको और अपनी जीभको डशना और संरंभ ज्वर जागना राद और लोहूकी गंधका आना ये स्कंदापस्मारग्रहसे पीडितहुये बालकके लक्षणहैं ।
For Private and Personal Use Only