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(७६६)
अष्टाङ्गहृदयेअथवा इन्हीं औषधोंके चूरणोंकरके चूर्णित करै ॥ ७३ ॥ अथवा सुन्दर पिसेहुये मुलहटी शंख सुरमा रशोत इन्होंकरके अवचूर्णितकरै और सारिवा और शंखकी नाभिकरके अथवा असनाकी त्वचाकरके लेपितकरै ॥ ७४ ॥ राग और खाजकी अधिकतावाले इस रोगमें जोखोंकरके स्रावको करै और इस गुदकंटकरोगमें पित्तके घावके तुल्य सब औषध करना योग्यहै ॥ ७९ ॥
पाठावेल्लद्विरजनीमुस्तभाीपुनर्नवैः ॥ सबिल्वत्र्यूषणैः सर्पिवृश्चिकालीयुतैःशृतम् ॥७६ ॥
लिहानो मात्रया रोगैर्मुच्यते मृत्तिकोद्भवैः॥ पाठा वायविडंग हलदी दारुहलदी नागरमोथा भारंगी शांठी बेलगिरी सूंठ मिरच पीपल मेढासिंगी इन्होंकरके पकाये वृतको।।७६॥ मात्राकरके चाटनेवाला बालक मृत्तिकासे उपजे रोगोंसे छूटजाताहै।
व्याधेर्यद्यस्य भैषज्यं स्तनस्तेन प्रलेपयेत् ॥ ७७ ॥
स्थितो मुहूर्त धौतोनुपीतस्तं तं जयेद्गदम् ॥ ७८ ॥ और जिस रोगका जो औषधहै तिसकरके लेपितकिये स्तन ॥ ७७ ॥ और दोघडीतक तिस लेपको धारण करनेवाले स्तनको पीछे धोयकर पानकरना तिस तिस रोगको जीतताहै ॥ ७८ ॥ इति वेरी निवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभाषाटीकायां
उत्तरस्थाने द्वितीयोऽध्यायः ॥ २ ॥
तृतीयोऽध्यायः। अथातो वालग्रहप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः। इसके अनंतर बालग्रहप्रतिषेधनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे।
पुरा गुहस्य रक्षार्थ निम्मिताः शूलपाणिना॥
मनुष्यविग्रहाः पञ्च सप्त स्त्रीविग्रहा ग्रहाः॥१॥ पहिले स्वामिकार्तिककी रक्षाके अर्थ महादेवकरके रचेहुये और मनुष्यशररिवाले पांच और स्त्रीके शरीरवाले सात ७ ग्रहहैं ॥ १ ॥
स्कन्दो विशाखो मेषाख्यः श्वग्रहः पितृसंज्ञितः। शकुनिःपूत नाशीतपूतना दृष्टिपूतना ॥ २॥ सुखमण्डलिका तद्वद्रेवती शुष्करेवती ॥ तेषां ग्रहीष्यतां रूपं प्रततं रोदनं ज्वरः ॥३॥ स्कन्द विशाख मेषाख्य श्वग्रह पितृसंज्ञित शकुनि पूतना शीतपूतना दृष्टिपूतना ॥ २ ॥ मुख मंडलिका रेवती शुष्करेवती इन्होंमें स्कन्द आदि पांच पुरुषके रूपवाले हैं और शकुनि आदि ७ स्त्रोके रूपवाले हैं और तिन्होंके ग्रहण करनेमें पूर्वरूप निरंतर रोना और उबर होताहै ॥ ३ ॥
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