________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(७५६)
अष्टाङ्गहृदयेऔर बकरीका दूध हरडै सूंठ मिरच पीपल पाठा वच सहोजना सेंधानमक करके ।। ४६ ॥ सिद्ध किया यह सारस्वत घृत वाणी धारणा स्मृति अग्निको करताहै ॥
वचामृताशठीपथ्याशंखिनीवेल्लनागरैः॥४७॥
अपामार्गेण च घृतं साधितं पूर्ववद्गुणैः॥ और वच गिलोय कचूर हरडै शंखिनी वायविडंग सूंठ॥ ४७ ॥ ऊंगासे सिद्ध किया वृत पूर्वोक्त गुणोंको करताहै ॥
हेमश्वेतवचाकुष्ठमर्कपुष्पी सकांचना ॥४८॥ हेममत्स्याक्षकः शंख कैण्डर्य्यः कनकं वचा॥चत्वार एते पादोक्ताःप्राश्या मधुघृतप्लुताः॥४९॥ वर्ष लोढा वपुर्मेधाबलवर्णकराः शुभाः ॥
और सोना कपूर वच कूठ यहांतक और अर्कपुष्पी कचना यहांतक ॥४८॥ सोना ब्राह्मी शंख यहांतक कंभारी सोना वच यहांतक घृत और शहदसे मिलेहुये ये चारों लेह ॥ ४९ ॥ वर्षतक चाटे हुये शरीरधारण बल वर्णको करतेहैं और शुभहैं ।
वचायष्ट्याह्वसिन्धूत्थपथ्यानागरदीप्यकैः ॥ ५० ॥
शुद्ध्यते वाग्धविर्लीः सकुष्ठकणजीरकैः॥५१॥ और वच मुलहटी सेंधानमक हरडै झूठ अजमोद इन्होंकरके ॥ ५० ॥ और कूट पीपल जीय इन्होंकरके किये चूरनको घृतसे संयुक्तकर चाटै तो वाणी शुद्ध होजातीहै ॥ ५१ ॥ इति बेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिताभापाटीकायाम्
उत्तरस्थाने प्रथमोऽध्यायः ॥ १ ॥ द्वितीयोऽध्यायः।
अथातो बालामयप्रतिषेधमध्यायं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर बालरोगप्रतिषेधनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे ।
त्रिविधः कथितो बालः क्षीरान्नोभयवर्त्तनः॥
स्वास्थ्यं ताभ्यामदुष्टाभ्यां दुष्टाभ्यां रोगसम्भवः॥१॥ मुनिजनोंने बालक तीन प्रकारके कहेहैं दूधको पोनवाला और अन्नको खानेवाला और दूध व अन्नको खानेवाला ऐसे नहीं दुष्टहुये अन्न और दूधकरके आरोग्य रहताहै और दुष्टहुये अन्न और दूधके सेवनसे रोगकी उत्पत्ति होतीहै ।। १ ॥
यदद्भिरेकतां याति न च दोषैरधिष्टितम्॥तद्विशुद्धं पयो वाताढुष्टं तु लवतेऽम्भास॥२॥ कषायं फेनिलं रूक्षं वर्षोमूत्रविब
For Private and Personal Use Only