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, उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७५७) न्धकृत् ॥ पित्तादृष्टाम्लकटुकं पीतराज्यप्सु दाहकृत् ॥३॥ कफात्सलवणं सान्द्रं जले मज्जति पिच्छिलम् ॥ संसृष्टलिंगं संसर्गात्रिलिङ्ग सान्निपातिकम् ॥ ४॥
जो दूध पानीके संग एकभावको प्राप्त होजावे और वात आदि दोषोंकरके अधिष्ठित नहीं होवे वह दूध शुद्ध होताहै और वातकरके दुष्ट हुआ दूध जलमें तिरता है ॥ २॥ और कशैला और झागोंसे संयुक्त और रूखा विष्ठा और मूत्रको बंध करनेवाला ऐसा होताहै और पित्तसे दुष्टहुआ दूध खट्टा कडुआ होताहै और पानीमें गेरनेसे पीली पंक्तियोंवाला होजाताहै और दाहको करताहै ॥३॥ कफसे दुष्टहुआ दूध सलोना और करडा होजाता है और पिच्छिल होजाताहै और जलमें डूबजाताहै और दो दोपोंकरके दुष्टहुआ दूध पूर्वोक्त दो दोषोंके लक्षणोंसे संयुक्त होताहै और सन्निपातसे दुष्टहुआ दूध तीन दोषोंके पूर्वोक्त लक्षणवाला होताहाहै ॥ ४ ॥
यथास्वलिङ्गांस्तयाधीञ्जनयत्युपयोजितम् ॥
शिशोस्तीक्ष्णामतीक्ष्णां च रोदनालक्षयेद्रुजम् ॥ ५॥ बालकके उपयुक्त किया दुष्ट दूध अपने लक्षणोंवाले रोगोंको उपजाताहै और बालकके तीक्ष्ण तथा कोमल पीडाको रोदनसे लक्षितकरै ॥ ५ ॥
स यं स्पृशेदृशं देशं यत्र च स्पर्शनाक्षमः॥ तत्र विद्याद्रुमूनि रुजं चाक्षिनिमीलनात् ॥ ६॥ हृदि जिह्वोष्ठदशनश्वासमुष्टिनिपीडितैः॥कोष्ठे विवन्धवथुमस्तनदंशान्त्रकूजनैः॥७॥ आध्मानपृष्ठवमनद्यठरोन्नमनैरपि।बस्तौ गुह्ये च विण्मूत्रसङ्गत्रासदिगीक्षणैः ॥ ८॥
जो बालक जिस देशका स्पर्शकरै और जहां स्पर्शको सहै नहीं तिस देशमें पीडाको जान और नेत्रोंके मीचनेसे शिरमें पीडाको जानै ॥ ६ ॥ जीभ और होठका डशना श्वास मूठीको मींचना इन्हों करके बालकके हृदयमें पीडाको जाने और बालकके कोष्टमें पीडाको विबंध छर्दैि चूंचियोंका डशना आंतोंका शब्द ॥ ७ ॥ अफारा पृष्ठभागका नयजाना पेटका ऊंचापन इन्होंकरके जाने और बालकके बस्तिस्थानमें तथा गुदामें पीडाको विष्ठा और मूत्रका बंधा उद्वेग दिशाओंके देखनेसे जाने ॥८॥
अथ धान्याः क्रिया कुर्याद्यथादोषं यथामयम् ॥ पीछे दोपके और रोगके अनुसार वैद्य धायकी क्रियाको करै ॥............ । तत्र वातात्मके स्तन्ये दशमूलं त्र्यहं पिबेत् ॥ ९॥
अथ वाग्निवचापाठाकटुकाकुष्ठदीप्यकम् ॥ .. सभागीदारुसरलवृश्चिकालीकणोषणम् ॥ १०॥
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