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उत्तरस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७५५) प्रियालमज्जमधुकमधुलाजासितोत्पलैः॥ अपस्तनस्य संयोज्यः प्रीणनो मोदकः शिशोः॥३९॥ दीपनो बालबिल्वैलाशर्करालाजसक्तुभिः॥
संग्राहीधातुकीपुष्पशर्करालाजतर्पणैः ॥४०॥ चिरोंजीकी मा मुलहटी शहद धानको खील मिसरी इन्होंकरके बनायेहुये और पुष्ट करनेवाले मोदकको चूचियोंके छोडनेवाले बालकको देवै ॥ ३९ ॥ कच्ची बेलगिरी इलायची खांड धानकी खीलोंके सत्तु इन्होंसे बनायाहुआ दीपनरूप मोदक अथवा धायके फूल खांड धानकी खीलोंके तर्पणसे बनायाहुआ संग्राहीरूप मोदक प्रयुक्त करना योग्य है ॥ ४० ॥
रोगांश्चास्य जयेत्सौम्यैर्भेषजैरविषादकैः॥
अन्यत्रात्ययिकाव्याधेविरेकं सुतरां त्यजेत् ॥४१॥ इस बालकके रोगोंको क्षोभसे वर्जित और सौम्य औषधोंकरके जीत और आत्ययिकरोगके विना अतिशयकरके जुलाबको त्यागै ॥ ४१ ।।
त्रासयेन्नाविधेयं तं त्रस्तं गृहन्ति हि ग्रहाः ॥
वस्त्रवातात्परस्पर्शात्पालयेल्लविताच्च तम् ॥ ४२ ॥ और अनायत किये बालकको डरावै नहीं क्योंकि त्रस्तहुये बालकको ग्रह ग्रहण करलेतेहैं और वस्त्रके बायु दूसरेके स्पर्श लंघनसे बालकको रक्षितकरै ।। ४२ ॥
ब्राह्मीसिद्धार्थकवचासारिवाकुष्ठसैन्धवैः॥ सकणैः साधितं पीतं वाङ्मेधास्मृतिकृद्धृतम् ॥ ४३॥
आयुष्यं पाप्मरक्षोन्नं भूतोन्मादनिबर्हणम् ॥ ब्राह्मी सफेद सरसों वच कूठ पीपल सेंधानमक इन्होंसे साधित किया और पान किया घृत वाणी बुद्धि स्मृतिको करता है ॥ ४३॥ वायुमें हितहै और पाप राक्षस दोष भूतोन्मादको दूर करताहै।
वचेन्दुलेखा मण्डूकी शङ्कपुष्पी शतावरी॥४४॥ब्रह्मसोमामृताब्राह्मीः कल्कीकृत्य पलांशिकाः॥अष्टाङ्गं विपचेत्सर्पिःप्रस्थंक्षीरं चतुर्गुणम्॥४५॥तत्पीतं धन्यमायुष्यं वाङ्मेधास्मृतिबुद्धिकृत्।
और वच बावची मंडूकी शंखपुष्पी शतावरी॥४४॥श्वेतविदारी गिलोय ब्राह्मी ये सब चार चार तोले ले इन्होंके कल्कमें २५६ तोले दूधको मिलाके ६४ तोले घृतको पकावै यह अष्टांग घृतहै ॥४५॥ पानकिया यह घृत धन्यहै और आयुमें हितहै और वाणी बुद्धि स्मृति धारणाको करताहै।।
अजाक्षीराभयाव्योषपाठोग्राशिग्रुसैन्धवैः ॥ ४६॥ सिद्धं सारस्वतं सर्वािङ्मेधास्मृतिवह्निकृत् ॥
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