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(७१२)
अष्टाङ्गहृदयेऔर इस देवताडके फूलोंमें और फलोंमें दूधसे बनीहुई पेया हितहै ॥ २० ॥ कोमल रूप देवताडके फलको दूधमें पकाय जब मलाई उपजै तिसको खावै और कठिनरूप देवताडके फलको दूधमें पकाय पीछे दही जमाय पीछे रस बनाय तिसको पीवै हरित पांडुरंगके देवताडके फलको दुधमें पकाय पीछे दहीको जमाके पावै ॥ २१ ॥ कफसे उपजे अरोचकमें और खांसीमें और पांडूरोगों और राजयक्ष्मामें मर्दित करके छानेहुये वारुणी मदिराके मंडको पावै ॥ २२ ॥
इयं च कल्पना कार्या तुम्बीकोशातकीष्वपि ॥ यह कल्पना तूंबी और कडवी तोरी आदिमेंभी करनी योग्य है । पर्यागतानां शुष्काणां फलानां वेणिजन्मनाम् ॥२३॥ चूर्णस्य पयसा शुक्तिं वातपित्तादितः पिबेत् ॥ द्वे वा त्रीण्यपि वा ऽपोथ्य क्वाथे तिक्तोत्तमस्य वा ॥२४॥ आरग्वधादिनवकादासुत्यान्यतमस्य वा ॥ विमृद्य पूतं तं काथं पित्तश्लेष्मज्वरी पिबेत् ॥ २५॥
और अच्छी तरह प्राप्त पाकवाले और देवदालीसे उत्पन्न होनेवाले और शुष्क फलोंके ॥२३॥ चूर्णको दो तोलेभर ले दूधके संग वात और पित्तसे पीडित हुआ मनुष्य पावै और दो अथवा ३ कडुवीतोरीके फलोंका चूर्णकर पीछे नींबके काथमें मिला पित्त कफ ज्वरवाला पावै ॥२४॥ अथवा आरग्वधादिगणके नव औषधोंमेंसे एककोईसेके काथमें दो अथवा तीन देवताडके फलोंको मर्दितकर और छान तिस क्वाथको पित्त कफ ज्वरमें पावै ॥२५॥
जीमूतचूर्ण कल्क वा पिबेच्छीतेन वारिणा॥
ज्वरे पैत्ते कवोष्णेन कफवातात्कफादपि ॥ २६ ॥ देवताडके फलके चूर्णका अथवा कल्कको शीतलपानीमें आलोडितकरके पित्तज्वरमें पीवै और तिसीके कल्कको अथवा चूर्णको कफवातसे उपजे तथा कफसेउपजे ज्वरमें कछुकगरम पानी के संग पीवै ॥ २६ ॥
कासश्वासविषच्छर्दिज्वरार्ने कफकर्शिते ॥
इक्ष्वाकुर्वमने शस्तः प्रताम्यति च मानवे ॥ २७॥ खांसी श्वास विष छर्दि ज्वरसे पीडित कफसे कर्षित और प्रतामित मनुष्यको वमनमें कडवी तूंबी श्रेष्ट है ॥ २७ ॥
फलपुष्पविहीनस्य प्रवालैस्तस्य साधितम् ॥
पित्तश्लेष्मज्वरे क्षीरं पित्तोदिक्ते प्रयोजयेत् ॥ २८॥ : फल और पुष्पकरके वर्जितहुई कडवी तूंबीके अंकुरोंकरके साधित किया दुध पित्तकी अधिक तावाले फित्तकफज्वरमें प्रयुक्त करै ॥ २८ ॥
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