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कल्पस्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
(७११) मैंनफल और नागरमोथा आदिके काथ और कल्ककरके सिद्ध किया अथवामैनफलआदिकरके सिद्ध किये दूधसे उपजा घृत कफकरके अभिभूतहुई अग्निमें और सूखतेहुये शरीरमें वमनरूप कहाहै ॥ १४ ॥
स्वरसं फलमज्जो वा भल्लातकविधिशृतम् ॥ आदीलेपनासिद्धं लीडा प्रच्छर्दयेत्सुखम् ॥१५॥ तंलेहं भक्ष्यभोज्येषु तस्कषायांश्च योजयेत् ॥ मैंनफलकी मजाके स्वरसको भिलावेकी विधिकरके पकावै, जब कडछीपै चिपकने लगै तब सिद्ध जानके चाटनेसे सुखपूर्वक वमन होता है ॥ १५ ॥ तिस लेहको और मैनफलके काथोंको भक्ष्य और भोज्य पदार्थोंमें प्रयुक्तकरै ।।
वत्सकादिप्रतीवापः कषायः फलमज्जजः॥१६॥ निम्बाकान्यत रक्वाथसमायुक्तो नियच्छति।बद्धमूलानपि व्याधीन्सर्वान्सन्त पणोद्भवान् ॥१७॥
और वत्सकादिगणके औषधोंके कल्कसे संयुक्तकिया मैनफलकी मज्जाका काथ ॥ १६ ॥ नींब आकमें एक किसीके काथ करके युक्तहुआ मैनफलकी मज्जाका काथ जड बांधी हुई और संतर्पणसे उपजी सब व्याधियोंको दूर करताहै ॥ १७ ॥
राटपुष्पफलश्लक्ष्णचूर्णैर्माल्यं सुरक्षितम् ॥ वमेन्मण्डरसादीनां तृप्तो जिघन्सुखं सुखी ॥१८॥
एवमेव फलाभावे कल्प्यं पुष्पं शलाटु वा ॥ मदनवृक्षके फूल और फलोंके महीन चूर्णोकरके सुंदर रूक्षितकिये फूलको मंड और रस आदि करके तृप्तहुआ मनुष्य सूंघताहुआ सुखपूर्वक वमन करताहै ॥ १८ ॥ इसीक्रमकरके फलके अभावमें मैनफलका फूल अथवा कच्चाफल कल्पितकरना योग्य है ।।
जीमूताद्याश्च फलवज्जीमूतंतु विशेषतः ॥ १९॥
प्रयोक्तव्यं ज्वरश्वासकासहिध्मादिरोगिणाम् ॥ और देवताड तूंबी कडवीतोरी आदिभी सब मैनफलकी तरह कल्पितकरनी योग्य हैं और विशे षकरके देवताड ॥ १९ ॥ ज्वर श्वास खाँसी हिचकी आदिरोगवालोंके अर्थ प्रयुक्त करना हित है ।।
पयः पुष्पेऽस्य निर्वृत्ते फले पेयापयस्कृताः॥२०॥ लोमशंक्षीरसन्तानं दध्युत्तरमलोमशे ॥धृते पयसि दध्यम्लं जाते हरि तपाण्डुके ॥२१॥आसुत्य वारुणीमण्डं पिबेन्मृदितगालितम्॥ कफादरोचके कासे पाण्डुत्वे राजयक्ष्मणि ॥२२॥
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