________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
( ७०४ )
अष्टाङ्गहृदये
क्षीरपिष्टच मालेपमेरण्डस्य फलानि वा ॥ कुर्याच्छूलनिवृत्त्यर्थं शताह्वां वाऽनिलेऽधिके ॥ ३४ ॥
दूधके संग पिसी हुई अलसी के लेपको अथवा अरंडके फलके लेपको अधिकवातसे उपजे शूल में शूलको निवृत्तिके अर्थ करै अथवा दूधमें पिसीहुई शौंफ के लेपको शूलकी विवृत्तिके अर्थ करै॥ १.४ ॥ मूत्रक्षारसुरापकं घृतमभ्यञ्जने हितम् ॥ सिद्धं समधुसूक्तं वा सेकाभ्यङ्गात्कोत्तरे ॥ ३५ ॥ गृहधूमो वचा कुष्ठं शताह्वा रजनीद्वयम् ॥ प्रलेपः शूलनुद्वातरक्ते वातकफोत्तरे ॥ ३६ ॥ मधुशिग्रोर्हितं तद्वद्दीजं धान्याम्लसंयुतम् ॥ मुहूर्तलिप्तमम्लैश्च सिञ्चेद्वातकफोत्तरे ॥ ३७ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अथवा शहद से संयुक्त किया चुक सेकमें और अभ्यंग में हित है, और कफकी अधिकता वाले बातरक्तमें ॥ ३५ ॥ घरका धूमां वच कूठ शोफ हलदी दारूहल्दी इन्होंका लेप शूलको हरता है और वात कफर्का अधिकता वाले वात रक्त में ||३६|| मुलहटी और सहोजना के बीजों को कांजी से संयुक्तकर लेपकरै, पीछे दोघडीतक लेपितकिये मनुष्यको कांजी आदि से सेचितकरे ॥ ३७ ॥ उत्तानं लेपनाभ्यङ्गपरिषेकावगाहनैः ॥
विरेकास्थापनैः स्नेहपानैर्गम्भीरमाचरेत् ॥ ३८ ॥
उत्तानसंज्ञक वातरक्तको लेप अभ्यंग स्नान परिसेक करके चिकित्सितकर और गंभीररूप वातरक्तको जुलाब और आस्थापन बस्तिकरके उपाचरितकरै ॥ ३८ ॥
वातश्लेष्मोत्तरे कोष्णा लेपाद्यास्तत्र शीतलैः ॥ विदाहशोफरुक्कण्डूविवृद्धिः स्तम्भनाद्भवेत् ॥ ३९ ॥
वात कफकी अधिकतावाले उत्तानरूप वातरक्तमें कछुक गरम किये लेप आदि हित हैं और तहां शीतल लेपोंकरके स्तंभ होनेसे दाह शोजा शूल खाजकी वृद्धि होती है ॥ ३९ ॥ पित्तरक्तोत्तरे वातरक्ते लेपादयो हिमाः ॥
उष्णैः प्लोषोपरुग्रागस्वेदापदरणोद्भवः ॥ ४० ॥
पित्तरक्तकी अधिकतावाले वातरक्त में शीतलरूप लेप आदि हित हैं, और तहाँ गरमलेप आदि करके अत्यंत दाह पीडा राग पसीना विदारण उपजते हैं ॥ ४० ॥
मधुयष्ट्याः पलशतं कषाये पादशेषिते ॥ तैलाढकं समक्षीरं पचेत्कल्कैः पलोन्मितैः ॥ ४१ ॥ स्थिरातामलकी दूर्वापयस्याभीरुचन्दनैः ॥ लोहहंसपदीमांसीद्विमेदामधुपर्णिभिः ॥ ४२ ॥ काकोलीक्षीरकाकोलीशतपुष्पर्द्धिपद्मकैः ॥ जीवन्ती जीवकर्ष
For Private and Personal Use Only