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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (७०३) द्राक्षेक्षुरसमद्यानि दधिमस्त्वम्लकाञ्चिकम् ॥
सेकार्थं तण्डुलक्षौद्रं शर्कराम्भश्च शस्यते ॥ २६॥ दाहमें दाख ईखका रस मदिरा दहीका पानी खट्टारस कांजी चावलोंका पानी शहद पानी खांडका सरबत ये सब सेकके अर्थ श्रेष्ट हैं ॥ २६ ॥
प्रियाः प्रियंवदा नार्यश्चन्दसाकरस्तनाः॥
स्पर्शशीताः सुखस्पर्शा नन्ति दाहरुजं क्लमम् ॥ २७ ॥ प्रियबोलनेवाली और प्रियरूप और चंदनकरके गीलेहाथ और चूंचियोंवाली और स्पर्शमें शीतल और सुखरूपस्पर्शवाली स्त्रिये दाह शूल ग्लानिको नाशतीहैं ॥ २७॥
सरागे सरुजे दाहे रक्तं हत्वा प्रलेपयेत्॥प्रपौण्डरीकमंजिष्ठादावीमधुकचन्दनैः ॥२८॥ ससितोपलकासेक्षुमसूरैरकसक्तुभिः।। लेपो रुग्दाहवीसर्परागशोफनिबर्हणः॥२९॥ राग और शूलसे संयुक्तहुये दाहमें रक्तको निकासनेके अर्थ लेप करावै, पौंडा मजीठ दारुहलदी मुलहटी चंदन ॥ २८ ॥ मिसरी कमलकांदा ईख मसूर नागरमोथा एरकतृणके बीजके सत्तू करके किया लेप शूल दाह विसर्प राग शोजेको दूरकरता है ॥ २९॥
वातनैः साधितः स्निग्धः कृशरो मुद्गपायसः॥
तिलसर्षपपिण्डैश्च शलनमुपनाहनम् ॥३०॥ वातनाशक द्रव्योंकरके साधितकिया और चिकना कसार और मूंगोंकी खीर तिल सरसोंके पिंडोंकरके उपनाहन कर्म शूलको नाशता है ॥ ३० ॥
औदकाः प्रसहानूपवेसवाराः सुसंस्कृताः॥जीवनीयौषधस्नेहयुक्ताः स्युरुपनाहने॥३१॥ स्तम्भतोदरुगायामशोफाङ्गहनाशनाः॥ जीवनीयौषधैः सिद्धाः सपयस्का वसाऽपि वा ॥३२॥ जलमें रहनेवाले और प्रसहसंज्ञक जीव और अनूपदेशके जीव इन्होंसे उपजेहुये अच्छीतरह संस्कृतकिये और जीवनीयगणके औषध और स्नेहसे संयुक्त मांस उपनाहनकर्ममें हित हैं ।। ३१ ॥ ये स्तंभ चभका शूल आयाम शोजा अंगके बंधको नाशते हैं अथवा जीवनीयगणके औषधोंमें सिद्धकरी और दूधसे संयुक्तकरी पूर्वोक्त जीवोंकी वसा पूर्वोक्त रोगोंको नाशती है ॥ ३२ ॥
घृतं सहचरान्मूलं जीवन्तीच्छागलं पयः॥
लेपः पिष्ट्वा तिलास्तद्वद्धृष्टाः पयसि निर्वृताः॥३३॥ घृत कुरंटा जीवंतकिी जड बकरीका दूध इन्होंका लेप हित है, अथवा तैसेही भुनेहुये और धमें प्राप्तकिये तिलोंको पीसके लेपकरना हित है ॥ ३३ ॥
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