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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६९७) बलाविल्वशते क्षीरे घृतमण्ड विपाचयेत् ॥
तस्य शुक्तिः प्रकुञ्चो वा नस्यं वाते शिरोगते ॥६३ ॥ खरैहटी और बेलगिरीकरके पकायेहुये दूधमें घृतके मंडको पकावै तिस मंडमेसे दो तोले अथवा ४ तोलेभर नस्यको शिरमें प्राप्त हुये वायुमें प्रयुक्तकरे ॥ ६३ ॥
तद्वत्सिद्धा वसा नक्रमत्स्यकृमजलूकजा॥
विशेषेण प्रयोक्तव्या केवले मातरिश्वनि ॥ ६४॥ इसी मंडकी तरह नक मच्छी कलुआ चिखल इन्होंकी वसाको विशेष करके केवल वायुमें प्रयुक्तकरै ॥ ६४ ॥
जीण पिण्याकं पञ्चमूलं पृथक्च क्वाथ्यं क्वाथाभ्यामेकतस्तैलमा भ्याम्॥ क्षीरादष्टांशं पाचयेत्तेन पानाद्वाता नश्येयुःश्लेष्मयुक्ता विशेषात् ॥६५॥
पुरानी खल और पंचमूलका अलग क्वाथ बनावै और दोनोंक्वाथोंके समान दूधको मिला अष्टमांशक्वाथ पकावै तिसके पानसे शीघ्रही कफसे मिले हुये वात नाशको प्राप्त होतेहैं ॥ ६५ ॥
प्रसारिणी तुलाक्वाथे तैलप्रस्थं पयः समम् ॥ द्विमेदामिशि मञ्जिष्ठाकुष्ठरास्नाकुचन्दनैः॥६६॥ जीवकर्षभकाकोलीयुगुला मरदारुभिः॥ कल्कितैविपचेत्सर्वमारुतामयनाशनम् ॥६७॥ ४०० तोले पसरन काथमें ६४ तोले तेल ६४ तोले दूध और मेदा महामेदा शोफ मंजीठ कूट रायशण पीतचंदन ॥ ६६ ॥ जीवक ऋषभक काकोली क्षीरकाकोली देवदार इन्होंके कल्कोंकरके पकावै यह तेल सवप्रकारके वातरोगोंको नाशताहै ॥ ६७ ॥
समूलशाखस्य सहाचरस्य तुलां समेतां दशमूलतश्चापलानि पञ्चाशदभीरुतश्च पदावशेषं विपचेद्वहेऽपाम् ॥६८॥ तत्र सेव्य नखकुष्ठहिमैलास्मृप्रियङनलिकाम्बुशिलाजैः।लोहितानलद लोहसराहैः कोपनामिशितुरुष्कनतैश्च ॥६९॥ तुल्यंक्षीरं पालिकैस्तैलपात्रं सिद्धं कृच्छ्राञ्छीलितं हन्ति वातान् ॥कम्पाक्षे पस्तम्भशोषादियुक्तान्गुल्मोन्मादौपीनसं योनिरोगान् ॥७॥ जड और शाखासहित कुरंटाको ४०० तोले लेवै और दशमूल ४०० तोले लेवे और शतावरी २०० तोले इन्होंको ४ ०९६ तोले पानीमें पकावै जब चौथाई भाग शेषरहै ॥ ६८ ।। तब खश नख कुठ चंदन इलायची ब्राह्मी मालकांगनी नलिका नेत्रवाला शिलाजीत मंजीठ बालछड कूठ देवदार लालकनेर सौंफ लोबान तगर ॥ ६९ ॥ ये सब चार चार तोले और दूध२२५तोले तेल
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