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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६९६) अष्टाङ्गहृदयेस्थानदृष्यादि चालोच्य कार्या शेषेष्वपि किया ॥५६॥ और शेषरहे वातरोगोंमें स्थान और दूष्य आदिको अच्छी तरह देखकर चिकित्सा करनी योग्यहै ॥ ५६ ॥ सहचरं सुरदारुसनागरं कथितमम्भसि तैलविमिश्रितम् ॥ पवनपीडितदेहगतिः पिबेद्रुतविलम्बितगो भवतीच्छया॥५७॥ कुरंट देवदार सूंठ इन्होंके काथको तेलसे संयुक्तकर वायुसे पीडित देह और गमनवाला मनुष्य पावै इच्छाकरके जलदी गमनकरनेवाला व विलंबसे गमन करनेवाला होजाताहै ॥ १७ ॥ रास्नामहौषधद्वीपिपिप्पलीशठिपौष्करम् ॥ पिष्ट्वा विपाचयेत्सर्पिर्वातरोगहरं परम् ॥ ५८ ॥ रायशण सूंठ चीता पीपल कचूर पोहकरमूल इन्होंके कल्कसे घृतको पका यह अच्छीतरह वातरोगको हरताहै ॥ ५८ ॥ निम्बामृतावृषपटोलनिदिग्धिकानां भागान्पृथग्दशपलाविपचेद्घटेऽपाम् ॥ अष्टांशशेषितरसेन पुनश्च तेन प्रस्थं घृतस्य विपचेत्पिचुभागकल्कैः॥५९॥ पाठाविडङ्गसुरदारुगजोपकुल्या द्विक्षारनागरानिशामिशिचव्यकुष्ठैः॥ तेजोवतीमरिचवत्सकदी प्यकाग्निरोहिण्यरुष्करवचाकणमूलयुक्तैः ॥६०॥ मञ्जिष्ठयाति विषया विषया यवान्या संशद्धगुग्गुलुपलैरपि पञ्चसंख्यैः॥त सेवितंप्रधमति प्रबलं समीर सन्ध्यस्थिमजगतमप्यथ कुष्ठमी दृक् ॥६१ ॥ नाडीव्रणाव॒दभगन्दरगण्डमालाज+सर्वगदगुल्मगुदोत्थमेहान् ॥यक्ष्मासचिश्वसनपीनसकासशोफहृत्पाण्डुरोगमदविद्रधिवातरक्तम् ॥ ६२॥ नीब गिलोय वांसा परवल कटेहली ये सब अलग अलग चालीश चालीश तोले लेवै पीछ इन्हों को १०२४ तोले पानीमें पकावै जब आठवां हिस्सा शेषरहे तब ६४ तोले घृतको मिला और एक एक तोले प्रमाणसे वक्ष्यमाण कल्कोंको मिला फिर पकावै ॥ ५९॥ पाठा वायविडंग देवदार गजपीपल साजीखार जवाखार सुंठ हलदी शोफ चव्य कूठ मालकांगनी मिरच कूडाकी छाल अजमोद चीता हरडै भिलावां वच पीपलामूल इन्होंकरके ।। ६०॥ और मजीठ अतीश कलहारी अजवायन इन्होंकरके और २० तोले शुद्ध गूगल करके पूर्वोक्त घृतको सिद्धकरे यह सेवित किया घृत बलवान् वात संधिवात हड्डीवात मज्जावात संधिगतकुष्ठ मजागतकुष्ठ ।। ६१ ।। नाडीव्रण अर्बुद भगंदर गंडमाला जातेके ऊपरके सब रोग गुल्म बवासीर प्रमेह राजरोग अरुची श्वास पीनस खांसी शोजा हृद्रोग पांडुरोग मदात्यय विद्रधि वातरक्तको शांत करताहै ॥ ६२ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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