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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - सूत्रस्थानं भाषाटीकासमेतम् । (१३) गुरुमन्दहिमस्निग्धश्लक्ष्णसान्द्रमृदुस्थिराः। गुणाः ससूक्ष्मविशदा विंशतिः सविपर्ययाः ॥ १८ ॥ तिस द्रव्यमें गुरुआदि दश गुण होते हैं । और अपनेसे विरुद्ध गुणोंके सहित सब बीस गुण होते हैं । जैसे गुरु १ इससे विरुद्ध गुण लघु २ मन्द ३, इससे विरुद्ध गुण तीक्ष्ण ४, हिम ५ इससे विरुद्ध गुण उष्ण ६, स्निग्ध ७ इससे विपर्याय गुण रूक्ष ८, श्लक्ष्ण ९ इससे विरुद्ध गुण खर १०, सान्द्र ११ इससे विरुद्ध गुण द्रव १२, मृदु १३ इससे विरुद्ध गुण कठिन १४ स्थि१६ इससे विरुद्ध गुण सर १६, सूक्ष्म १७ इससे विरुद्ध गुण स्थूल १८, विशद १९ इससे विरुद्ध गुण पिच्छिल २०. अब रोगके कारणको कहते हैं। कालार्थकर्मणां योगा हीनमिथ्यातिमात्रकाः॥ सम्यग्योगश्च विज्ञेयो रोगारोग्यैककारणम् ॥ १९ ॥ कालका हीन योग उसके स्वरूपकी हानि है अतियोगस्वरूपका अतिशय होना है मिथ्यायोग स्वरूपसे विपरीत हो जाना है हीनयोग यथा-हीनशीतता हीनउष्णता हीनवर्षता, अतियोग यथामहाशरदी महागरमी महावर्षा, मिथ्यायोग यथा-शीतकालके समय अतिगरमी होनी गरमीके समय शीत और वर्षाकालके समय वर्षा न होनी यह तीनों योग रोगके कारण हैं और इनकी यथायोग्यमें स्थिति होनी आरोग्यताका कारण है। अर्थोंका अपनी २ इंद्रियोंका हीन संयोग हीनयोग कहलाता है अत्यन्त संयोग अतियोग कहलाता है और अनभिमत इन्द्रियोंके अर्थोंका योग मिथ्यायोग है.यह तीनों रोगके कारण हैं और इनका सम्यक योग आरोग्यताका कारण है इसी प्रकार कायादि कर्म की हीनप्रवृत्ति होनी हीनयोग है अतिप्रवृत्ति अतियोग है वेगसे बोलना भोजन करनेमें बोलना रागद्वेषादि मिथ्यायोग है इनका हीनादियोग रोगका कारण है सम्यक्योग आरोग्यताका कारण है इनकी समवृत्तिका नाम समयोग है। ___ काल अर्थात् शीत उष्ण वर्षाके लक्षणवाला अर्थ शब्द स्पर्श रूप रस गंध यह पंचमहाभूतोंके गुण, कर्म क्रिया काया वाणी मनकी चेष्टा इनका सम्बन्ध हीन मिथ्या और अधिक होनेसे रोगका और अच्छी प्रकार योग आरोग्यताका कारण है। रोगस्तु दोषवैषम्यं दोषसाम्यमरोगता। निजागन्तुविभागेन तत्र रोगा द्विधा स्मृताः॥ दोषोंके विषमपनेको रोग कहते हैं, और दोषोंकी समताको आरोग्य कहते हैं और दोषज तथा आगंतुज इन विभागोंकरके रोग दो प्रकारके कहेहैं । वातादि दोषसे उत्पन्न हुए निज और For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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