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(६८०)
अष्टाङ्गहृदयेगगल मिरच वायविडंग शरसों हीराकसीस राल नागरमोथा श्रीवेष्ट धूप हरतालगंधक मनशिल कूठ कवीला इन्होंकरके ॥ ७१॥ और हलदी दारुहलदी इन्होंको पुवांडके बीजोंके तेलमें मिश्रित कर लेपकरे पीछे सूर्यको किरणोंसे तपावै इस करके घृष्ट कुष्ठ नाशको प्राप्त होतेहैं ॥ ७२ ॥
मरिचंतमालपत्रं कुष्ठं समनःशिलं सकासीसमातैिलेन युक्तम्षितं सप्ताहं भाजने ताने॥७३॥ तेनालिप्तं सिध्मंसप्ताहाद्ध
मसेविनोऽपैति ॥ मासन्नवं किलासं स्नानेन विना विशुद्धस्य७४ मिरच तेजपात कूठ मनशिल हीराकसीस इन्होंको तेलमें संयुक्त कर तांवेके पात्रमें ७ दिनोंतक धेरै ॥७३॥ इसकरके लिप्तहुआ सिध्म कुष्ठ अर्थात् सीपरोग घामके सेवनेवाले मनुष्यके ७ दिनमें दूर होताहै स्नानके विना शुद्धहुए मनुष्यके एक महीना लेप करनेसे नवीन किलाशकुष्ठ दूर होताहै।।७४||
मयूरकक्षारजले सप्तकृत्वः परिस्रुते ॥
सिद्धं ज्योतिष्मतीतैलमभ्यङ्गासिध्मनाशनम् ॥ ७५॥ सातवार झिराये हुये ऊंगाखारके पानीमें सिद्ध किया मालकांगनीका तेल सिध्मरोगको नाशताहै७५॥
वायसजंघामूलं वमनीपत्राणि मूलकाबीजम् ॥
तक्रेण भौमवारे लेपः सिध्मापहः सिद्धः॥७६ ॥ मकोहकी जड कडवी तोरीके पत्ते मूलीके बीज इन्होंको तक्रमें पीस मंगलवार के दिन लेप करै यह सिद्ध लेप सिध्मरोगको नाशताहै ॥ ७६ ॥
जीवन्ती मञ्जिष्ठा दार्वी कम्पिल्लकं पयस्तुत्थम्॥ एष घृततैल पाकः सिद्धः सिद्धे च सर्जरसः॥७७ ॥ देयः समधूच्छिष्टो विपादिका तेन नश्यति युक्ता ॥ चर्मैककुष्ठकिटिभं कुष्ठं शाम्यत्यलसकं च ॥७॥ जीवंती मजीठ दारुहलदी कवीला आकका दूध तूतिया इन्होंको घृत और तेलमें पकाके सिद्ध होनेपै राल ॥ ७७ ॥ और मोमको मिलावे इस लेप करके विपादिका कुष्ट चर्मकुष्ट एककुष्ठ किटिभकुष्ठ अलसक इन्होंका नाश होताहै ।। ७८ ॥
मूलंसप्ताह्वात्वक्छिरीषाश्वमारादर्कान्मालत्याश्चित्रकास्फोत निम्बात्॥ बीजं कारों सार्षपं प्रापुनाटं श्रेष्ठा जन्तुम्नं त्र्यूषणं द्वे हरिद्रे॥ ७९ ॥ तिलतैलं साधितं तैः समूत्रैस्त्वग्दोषाणां दुष्टनाडीव्रणानाम्॥ अभ्यतेन श्लेष्मवातोद्भवानां नाशायालं वज्रकं वज्रतुल्यम् ॥ ८॥
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