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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
(६८१) शातलाको जड और शिरस कनेर आक चमेली चीता श्वेत शारिवा नींब इन्होंकी छाल करजुआके बीज त्रिफला वायविडंग सूंठ मिरच पीपल हलदी दारुहलदी ॥ ७९ ॥ इन्होंकरके और गोमूत्रके संग साधित किया तिलोंका तेल दुष्ट नाडीव्रणोंको कफ और वातसे उपजे त्वचाके दोषोंको नाशनेके अर्थ समर्थ हैं यह वज्रकतेल वज्रके तुल्य कहाहै ॥ १० ॥
एरण्डतायघननीपकदम्बमा कम्पिल्लवेल्लफलिनीसुरवारुणीभिः ॥ निर्गुण्ड्यरुष्करसुराह्वसुवर्णदुग्धाश्रीवेष्टगुग्गुलुशि लापटुतालविश्वैः ॥ ८१ ॥ तुल्यस्नुगर्कदुग्धं सिद्धं तैलं स्मृतं महावज्रम्॥ अतिशयितवनकगुणं श्वित्राोंग्रन्थिमालानम् ॥ ८२॥
अरंड रसोत नागरमोथा दोनों कंदब भारंगी कपिला वायविडंग कलहारी इंद्रायण संभालु भिलावाँ देवदार चोष श्रीवेष्टधूप गूगल मनशिल नमक ताड सूंठ इन्होंकरके ॥ ८१ ॥ तुल्य थूहरके और आकके दूधमें सिद्ध किया महावज्रतैल कहाहै यह अतिशय करके पूर्वोक्त वज्रक तेलके समान गुणोंको करताहै और श्वित्र बवासीर ग्रंथिरोग गंडमालाको नाशताहै ॥ ८२ ॥
कुष्ठाश्वमारभृङ्गार्कमूत्रस्नुक्क्षीरसैन्धवैः ॥
तैलं सिद्धं विषावापमभ्यगात्कुष्ठजित्परम् ॥ ८३॥ कूट कर भांगरा आक गोमूत्र थूहरका दूध सेंधानमक इन्होंमें सिद्ध किया और मीठातोलियाकी प्रतिवापसे संयुक्त तेल मालिश करनेसे अतिशयकरके कुष्टको जीतताहै ॥ ८३ ॥
सिद्धं सिक्थकसिन्दूरपुरतुत्थकतामंजैः॥
कच्छू विचचिका वाऽऽशु कटुतैलं नियच्छति ॥ ८४ ॥ मोंम सिंदूर गूगल तूतिया रसोत इन्होंकरके सिद्ध किया कडवा तेल कच्छूको अथवा विचर्चिका कुष्ठको नाशताहै ॥ ८४ ॥
लाक्षाव्योषं प्रापुनाटश्च वीजं सश्रीवेष्टं कुष्ठसिद्धार्थकाश्च ॥ तक्रोन्मिनः स्थारिद्राचलेपोददूषक्तोमूलकोत्थञ्च बीजम् ॥५॥ लाख सूट मिरच पीपल पुआंडके बीज श्रीवेष्टधूप कुठ शरसों हलदी इन्होंको तकमें पीस लेप करना दऍरोगमें कहाहै, अथवा मूलीके बीजोंको तक्रमें पीस लेप दद्दूकुष्ठों कहाहै ॥ ८५ ।। चित्रकसौभाञ्जनको गुडूच्यपामार्गदेवदारूणि॥खदिरो धवश्च लेपः श्यामा दन्ती द्रवन्ती च ॥८६॥ लाक्षारसाञ्जनैलापुनर्न वाचेति कुष्ठिनां लेपाः॥दधिमण्डयुताः पादैः षट् प्रोक्ता मारुतकफघ्नाः ॥ ८७॥
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