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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् ।
( ६६५ )
गाम और अनूपदेशमें उपज और बलसे रहित पशुके शरीरशे उपजा ऐसा मांस सूखा शाक तिलके पदार्थ पिसाहुआ अन्न दही नमक खरैहटी मदिरा खटाई भुने हुये गेहूं सूखे मांसका रस और नहीं शमन होनेवाला पदार्थ भारी और प्रकृतिके विरुद्ध और दाह करनेवाला पदार्थ रात्रिमें शयन मैथुन इन सत्रों को शोजारोगी वजें ॥ ४३ ॥
इति वेरीनिवासिवैद्यपंडितरविदत्तशास्त्रिकृताऽष्टांगहृदयसंहिता भापाटीकायांचिकित्सितस्थाने सप्तदशोऽध्यायः ॥ १७ ॥
अष्टादशोऽध्यायः ।
अथातो विसर्पचिकित्सितं व्याख्यास्यामः । इसके अनंतर विसर्परोगचिकित्सितनामक अध्यायका व्याख्यान करेंगे । आदावेव विसर्पेषु हितं लंघनरूक्षणम् ॥ रक्तावसेको वमनं विरेकः स्नेहनं न तु ॥ १ ॥
विसर्परोग में प्रथम लंघन रूक्षण रक्तका निकासना वमन जुलाब ये हित हैं और स्नेहन हित है १ प्रच्छर्दनं विसर्पनं सयष्टीन्द्रयवं फलम् ॥
पटोलपिप्पलीनिम्बपल्वैर्वा समन्वितम् ॥ २ ॥
विसर्पको नाशता मुलहटी और इंद्रजवले संयुक्त अथवा परवल पीपल नौबके पत्ते इन्होंसे संयुक्त मैनफलसे हित है ॥ २ ॥
रसेन युक्तं त्रायन्त्या द्राक्षायास्त्रै फलेन वा ॥ विरेचनं त्रिवृच्चूर्णं पयसा सर्पिषाऽथवा ॥ ३ ॥ योज्यं कोष्ठगते दोषे विशेषेण विशोधनम् ॥
त्रायमाणके रससे दाखके रससे अथवा त्रिफला के रससे जुलाब देना योग्य है अथवा निशोतके चूर्णको दूधके संग अथवा घृतके संग प्रयुक्त करै ॥ ३ ॥ कोष्टगत दोपमें विशेषकरके शोधनद्रव्यको प्रयुक्त करै ॥
अविशोध्यस्य दोषेल्प शमनं चन्दनोत्पलम् ॥ ४ ॥ मस्तुनिम्बपटोलं वा पटोलादिकमेव वा ॥ सारिवामलकोशीरमुस्तं वा कथितं जले ॥ ५ ॥
और शोधन के अयोग्य मनुष्य के जो अल्प दोष होर्वै तव शमनसंज्ञक चंदन कमलको प्रयुक्त करै ॥ ४ ॥ अथवा दहीका पानी नींव परवल इनको प्रयुक्त करै अथवा पटोलादिगणको प्रयुक्त करे, अथवा शारिवा आमला खश नागरमोथेको पानी में पकाके प्रयुक्त करे ॥ ९ ॥
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