________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । (६६३) अथानिलोत्थे श्वयथौ मासाई त्रिवृतं पिबेत् ॥२८॥ तैलमैरण्डजंवातविडिबन्धे तदेवतु॥प्राग्भक्तंपयसायुक्तं रसैर्वाकारयेत्तथा ॥२९॥ स्वेदाभ्यङ्गान्समीरनॉल्लेपमेकाङगे पुनः ॥ मातु लुगाग्निमन्थेन शुण्ठीहिंस्रामराह्वयैः ॥ ३०॥
और वातसे उपजे शोजेमें १५ दिनोंतक निशोतको पावै ॥ २८ ॥ अथवा अरंडीके तेलको पीवै और वातकरके उपजे विष्टाके बंधेमें भोजनसे पहिले दूधसे अथवा मांसके रसोंसे संयुक्त किये अरंडीके तेलको पावै ॥ २९ ॥ अथवा वातको नाशनेवाले स्वेद और अभ्यंगको करै और एक अंगमें उपजे वातके शोजेमें विजोरा अरनी सूंठ बालछड देवदार इन्होंकरके लेप करै ॥ ३० ॥
पैत्ते तिक्तं पिबेत्सर्पियग्रोधायेन वा शृतम् ॥
क्षीरं तृड्दाहमोहेषु लेपाभ्यङ्गाश्च शीतलाः॥३१॥ पित्तके शोजे तिक्तनामवाले घृतको अथवा न्यग्रोधादिगणके औषधोंकरके पकाये हुये घृतको पीवै और तृषा दाह मोह इन्होंमें दूधको पीवै और शीतलरूप लेप तथा अभ्यंग हितहै ॥ ३१ ॥
पटोलमूलत्रायन्तीयष्टयाह्वकटुकाभयाः॥ दारु दार्वी हिमं दन्ती विशाला निचुलं कणा॥३२॥ तैःक्वाथः सघृतः पीतो हन्त्यन्तस्तापतृभ्रमान् ॥
ससन्निपातवीसर्पशोफदाहविषज्वरान्॥३३॥ परवलकी जड त्रायमाण मुलहटी कुटकी हरडै देवदार दारुहलदी चंदन जमालगोटाकी जड इंद्रायण जलवेत पीपल ॥ ३२ ॥ इन्होंकरके कियाहुआ और घृतसे संयुक्त कर पान किया हुआ काध अन्तर्दाह तृपा भ्रम सन्निपात विसर्प शोजा दाह विषमज्वरको नाशता है !॥ ३३ ॥
आरग्वधादिना सिद्धं तैलं श्लेष्मोद्भवे पिबेत् ॥ कफके शोजे आरग्वधादिगणके औषधोंकरके सिद्ध किये तेलको पीवै ॥
स्रोतोविबन्धे मन्देऽग्नाबरुचौ स्तिमिताशयः ३४ ॥
क्षारचूर्णासवारिष्टमूत्रतक्राणि शीलयेत् ॥ और स्रोतोंके विबंधमें और मंदाग्नि तथा अरुचीमें स्तिमितआशयवाला मनुष्य ॥ ३४ ॥ खार चूरन आसव आरीष्ट मूत्र तक इन्होंका अभ्यास करै ।।
कृष्णापुराणपिण्याकशिग्रुत्वक्सिकतातसीः॥ ३५॥
प्रलेपोन्मदने युज्यात्सुखोष्णा मूत्रकल्किताः॥ और पीपल पुरानी खल सहोजनाकी छाल खांड अलसी ॥ ३९ ॥ इन्होंको मूत्रमें पीस और सुखपूर्वक गरम कर लेप और मईनमें प्रयुक्त कर ॥
For Private and Personal Use Only