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(६६२)
अष्टाङ्गहृदयेदरोन्मितैः॥ कृता पेयाऽज्यतैलाभ्या युक्तिभृष्टा परं हिता॥ ॥२१॥ शोफातिसारहृद्रोगगुल्मार्थोऽल्पाग्निमेहिनाम् ॥गुणैस्तद्वच्च पाठायाः पञ्चकोलेन साधिता ॥ २२ ॥ पुराने जव पुरान शालिचावल इन्होंको दशमूलके पानीमें साधित कर और थोडासा नमक और स्नेहसे संयुक्त कर अल्प भोजन करना शोजेको हितहै ॥ १८ ॥ जवाखार सूट मिरच पीपलसे संयुक्त किये मूंगके और कुलथीके यूषोंकरके और पीपलसे संयुक्त किये जांगलदेशके जीवोंके मांसोंकरके तथा कछुआ गोधा शेहके मांसोंकरके ॥ १९ ॥ और अम्लसे रहित और मथित तथा औषधों से संयुक्त मदिरा ये पीनेमें हित हैं और जीरा कचर जीवन्ती अजमोद पोहकरमूल चीता इन्होंकरके ॥ २० ॥ और बेलगिरीका गूदा जवाखार विजोरा आठ आठ मासे प्रमाणसे लेवे इन्होंकरके करीड ई और युक्तिकरके घृत और तेल करके भुनीहुयी पेया ॥ २१ ॥ शोजा अतिसार हृद्रोग गुल्म बवासीर मंदाग्नि प्रमेह इन रोगवालोंको हित है, और पाठा पीपल पीपलामूल चव्य चीता झूठ इन्होंकरके साधित करी पेयाभी पूर्वोक्त गुणोंको देतीहै ॥ २२ ॥
शैलेयकुष्ठस्थौणेयरेणुकागुरुपद्मकैः।श्रीवेष्टकनखस्पृक्कादेवदारुप्रियमुभिः ॥ २३ ॥ मांसीमागधिकावन्यधान्यध्यामकबालकैः॥ चतुर्जातकतालीसमुस्तागन्धपलांशकैः॥२४॥ कुर्यादभ्यञ्जनं तैलं लेपं स्नानाय तूदकम् ॥ स्नानं वा निम्बवर्षाभूनक्तमालार्कवारिणा ॥ २५॥ शिलाजीत कूट गाजर रेणुका अगर पद्माख श्रीवेष्टभूप नखी मालनी देवदार मालकांगनी इन्होंकरके ॥ २३ ॥ और बालछड पीपल वनमें होनेवाला धनियां रोहिषतृण नेत्रवाला दालचीनी इलायची नागकेशर तेजपात तालीसपत्र नागरमोथा वंशलोचन इन्होंकरके ॥२४॥ मालिशका तेल अथवा लेप अथवा स्नानके अर्थ पानी तयार करै अथवा नींव शांठी करंजुआ आंक इन्होंके पानी करके स्नान करै ॥ २५॥
एकाङ्गशोफे वर्षाभकरवीरककिंशकैः॥विशालात्रिफलारोधनलिकादेवदारुभिः ॥ २६ ॥ हिंस्राकोशातकीमाद्रीतालपर्णीजयन्तिभिः॥स्थलकाकादनीशालनाकुलीवृषपणिभिः॥ २७॥ वृद्धिद्विहस्तिकणैश्च सुखोष्णैर्लेपनं हितम् ॥ एकांगशोजेमें शांठी कनेर केसू इन्द्रायण त्रिफला लोध नालिशाक देवदारु इन्होंकरके ।। २६ ।। बालछड कडवी तोरी काला अतीस मुसली अरनी स्थूलकाकणंती कौहवृक्ष साक्षी मूषपर्णी इन्हों करके ॥ २७ ॥ और वृद्धि लाल अरंड सफेद अरंड इन्होंको पीसके सुखपूर्वक गरम कर लेप करना हितहै ॥
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