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चिकित्सास्थानं भाषाटीकासमेतम् । . (६४७) विडङ्गं चित्रकं सक्तून्सघृतान्सैन्धवं वचाम् ॥ ८९॥
दग्ध्वा कपाले पयसा गुल्मप्लीहापहं पिबेत् ॥ और वायविडंग चौता सत्तू घृत सेंधानमक वच ।। ८९॥ इन्होंको ठेकरेमें दग्धकर पीछे दूधके संग पीवै यह गुल्मको और प्लीहरोगको हरताहै ॥
तैलोन्मित्रैर्वदरकपत्रैः संमर्दितैः समुपनद्धः॥९॥
मुशलेन पीडितोऽनुयाति प्लीहा पयोभुजो नाशम् ॥ तेलकरके मिले हुये और अच्छी तरह मर्दित किये ऐसे देवशिरसके पत्तोंकरके अच्छीतरह उपनाह किया हुआ ॥९० ॥ और पश्चात् मूशलकरके पीडित हुआ प्लीहरोग अर्थात् दूधको भोजन करनेवाले मनुष्यका तिल्लीरोग नाशको प्राप्त होता है ।
रोहीतकलताः क्लप्ताः खण्डशः साभयाजले॥९१ ॥ सूत्रे वाऽऽ सुनुयात्तत्तु सतरात्रस्थितं पिवेत् ॥कामलाप्लीहगुल्मार्शःकृमि मेहोदरापहम् ॥ ९२ ॥ .
और रोहिडा वृक्षकी खंड खंड हुई लताओंको हरडोके पानीमें ॥ ९१ ॥ अथवा. गोमूत्रमें स्थापित करे, वह सात रात्रीतक स्थितरहै तब तिस जलको पावै यह कामला तिल्लीरोग गुल्म बवासीर कृमिरोग उदररोग प्रमेहको नाशताहै ॥ ९२ ॥
रोहीतकत्वचा कृत्वापलानां पञ्चविंशतिम्॥कोलद्विप्रस्थसंयुक्तं . कषायमुपकल्पयेत् ॥ ९३॥पालिकै पञ्चकोलैस्तु तैः समस्तैश्च . तुल्यया॥ हरीतकत्वचा पिष्टै तप्रस्थं विपाचयेत् ॥ ९४ ॥ प्लीहाभिवद्धिं शमयत्येतदाशु प्रयोजितम् ॥
रोहिडा वृक्षकी छालको १०० तोले भरले पीछे १२८ तोले बेरसे संयुक्त कर काथको कल्पित करै॥९॥पीछे चारचारतोलेभर पीपल पीपलामूल चव्य चीता सुंठ इन्होंकरके और हरडोंकी छालकरके६४ तोले घृतको पका।।९४॥प्रयुक्त किया यह घृत शीघ्रही तिलोरोगकी वृद्धिको शांत करताहै।।
__ कदल्यास्तिलनालानां क्षारण क्षुरकस्य च ॥ ९५॥
तैलं पक्कं जयेत्पानात्प्लीहानं कफवातजम् ॥ और कदलीका खार तिलके नालोंका खार तालमखानाकाखार ।। ९५ ॥ इन्होंकरके पकाहुआ तेल पीनेसे कफ और वातसे उपजा तिल्लीरोगको जीतताहै ॥
अशान्तौ गुल्मविधिना योजयेदग्निकर्म च ॥ ९६ ॥ अप्राप्तपिच्छासलिले प्लीह्नि वातकफोल्बणे॥
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