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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६४६) .. अष्टाङ्गहृदये- . वा खादेत्स्वरससाधितम्॥८॥निरम्ललवणस्नेहं स्विन्नमन्नमनन्नभुक् ॥मासमेकं ततश्चैवं तृषितः स्वरसं पिबेत् ।। ८३॥ और हृत दोषोंवाले तिस मनुष्यको शीतलपानीसे स्नान कराके शीतलही दूधका पान करावे ॥ ८१ ।। अथवा पेयाका पान करावै अथवा निशोतका शाक व मंडकीका शाक व बथुआका शाक अथवा कालशाक अथवा यवनामवाला शाक इन्होंको अपने अपने स्वरसोंसे साधित कर खावै ॥८२॥ और तिन शाकोंको खटाई नमक स्नेह इन्होंसेभी वर्जितकरके शाकोंको खावै और स्विन्न तथा अस्विन भोजनको एक महीनातक खाता हुआ मनुष्य जब तृषित होवे तब शाकोंके स्वरसको पीवै ।। ८३ ॥ एवं विनिहते शाकैदोषे मासात्परं ततः॥ दुर्बलाय प्रयुञ्जीत प्राणभृत्कारभं पयः॥ ८४ ॥ ऐसे शाकोंकरके निकसे हुये दोषमें एक महीनाके उपरांत दुर्बलमनुष्यके अर्थ प्राणोंको बल करनेवाले ऊंटनीके दूधको प्रयुक्त करै ॥ ८४ ॥ प्लीहोदरे यथादोषं स्निग्धस्य स्वेदितस्य च ॥ शिरां मुक्तवतो दना वामबाहौ विमोक्षयेत् ॥ ८५॥ प्लीहोदरमें दोषके अनुसार स्निग्ध और स्वेदित मनुष्यको दहीके संग भोजन कराके वायीं बाहुमें नाडीको छुटावै ॥ ८५ ॥ लब्धे बले च भूयोऽपि स्नेहपीतं विशोधितम् ॥ समुद्रशुक्तिजं क्षारं पयसा पाययेत्तथा ॥८६॥ अम्लशृतं बिडकणाचर्णाढ्यं नक्तमालजम् ॥ सोभांजनस्य वा काथं सैन्धवाग्निकणान्वितम् ॥८७॥हिङ्ग्वादिचूर्ण क्षाराज्यं युञ्जीत च यथाबलम् ॥ बलके होजानमें फिरभी स्नेहको पीनेवाले और विशेषकरके शुद्ध हुये तिस भनुष्यको समुद्रकी सीपीके खारको दूधके संग पान करावै ॥ ८६ ॥ कांजीकरके पकाहुआ मनियारीनमक और पीपलके चूर्णसे संयुक्त करजुआके खारका पान करावै अथवा सहोजनाके काथको सेंधानमक चीता पीपलसे संयुक्त कर पान करावै ॥ ८७ ॥ हिंग्वादिचूरण खार षट्पलआदिवृत इन्होंको बलके अनुसार प्रयुक्त करै ॥ पिप्पली नागरं दन्ती समांशं द्विगुणाभयम् ॥ ८८ ॥ बिडार्भाशयुतं चूर्णमिदमुष्णाम्बुना पिबेत् ॥ और पीपल सूंठ जमालगोटाकी जड ये समानभाग और हरडै दो भाग ॥ ८८ ॥ और मनियारीनमक आधाभाग इन्होंको गरम पानीके संग पावै ।। For Private and Personal Use Only
SR No.020074
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKhemraj Krishnadas
Publication Year1829
Total Pages1117
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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